Sunday, December 22, 2024

“नाद” प्रदर्शनी में साजों का वृहद संसार, चित्रों में स्वर सम्राट रचित राग, “रागरंग” में राग़ों का मूर्त रूप, छायाचित्रों में तानसेन सम्मान प्राप्त करते मूर्धन्य संगीतज्ञ

तानसेन संगीत समारोह के शताब्दी उत्सव में संगीत प्रेमियों के बीच आकर्षण बनीं नई अनुषांगिक गतिविधियां

ग्वालियर :  तानसेन संगीत समारोह का शताब्दी महोत्सव संगीत एवं कला प्रेमियों को अनूठी सौगात से रूबरू करा रहा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत का यह शीर्षस्थ महोत्सव गायन—वादन के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इस शताब्दी समारोह पर संस्कृति विभाग द्वारा नई अनुषांगिक गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं। इन गतिविधियों में “नाद” वाद्ययंत्रों की प्रदर्शनी, चित्रांकन शिविर, 99वें वर्षों के तानसेन समारोह का सांगीतिक आस्वाद एवं 99वें वर्षों में तानसेन समारोह में प्रस्तुति के लिए पधारे कलाकारों की छायाचित्रों की प्रदर्शनी, रागरंग प्रदर्शनी, ललित कला महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं की चित्रकला कार्यशाला इत्यादि सम्मिलित हैं। इन सभी गतिविधियों से पूरा परिसर खुशनुमा बना हुआ है और हर कोई अपनी रुचि अनुसार इस सांस्कृतिक वातावरण का आनन्द ले रहा है।

“ढोल ढमाऊ” की गूंज के बिना कोई भी कार्य शुभ नहीं माना जाता

परिसर में सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित कर रही है “नाद” वाद्ययंत्रों की प्रदर्शनी। इस प्रदर्शनी में 600 से अधिक वाद्य जिनमें शास्त्रीय, लोक एवं जनजातीय संगीत में प्रयोग किए जाने वाले वाद्ययंत्र सम्मिलित हैं। यहां “खोड़म्टो” (खम) को प्रदर्शित किया जा रहा है, जो त्रिपुरा के जनजातीय समुदाय द्वारा प्रयोग किया जाता है। यह ताल वाद्य खम लकड़ी और चर्मपत्र से बना है। समूह नृत्य में इसका उपयोग किया जाता है। इसके अलावा यहां “जलतरंग” (कॉपर) को भी प्रदर्शित किया गया है। यह एक मधुर ताल वाद्य है, जो भारतीय उपमहाद्वीप से निकलता है। वहीं, “डानयेन” वाद्य भी आकर्षण बना हुआ है। यह एक पारम्परिक तार वाद्य है, एक प्रकार का ल्यूट, जिसकी ध्वनि अद्वितीय होती है। उत्तराखंड के पहाड़ी समुदाय की परम्परा और संस्कृति को संजोए “ढोल ढमाऊ” प्रत्येक संस्कार एवं सामाजिक गतिविधियों में प्रयोग होता है। इसकी गूंज के बिना कोई भी शुभकार्य पूर्ण नहीं माना जाता। पहाड़ों में विशेष तौर पर उत्तराखंड में ढोल ढमाऊ के साथ ही त्योहारों का आरम्भ होता है।

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, कृष्णराव शंकर पंडित एवं हीराबाई बड़ोदेकर को प्रदान किया गया था 

प्रथम तानसेन सम्मान

परिसर में 99वें वर्षों के तानसेन समारोह का सांगीतिक आस्वाद एवं 99वें वर्षों में तानसेन समारोह में प्रस्तुति के लिए पधारे कलाकारों की छायाचित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया है। जहां एक ओर क्यूआर कोड स्कैन कर संगीतप्रेमी 99वें वर्षों के तानसेन समारोह का सांगीतिक आस्वाद प्राप्त कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर छायाचित्रों में तानसेन समारोह के 99वें गौरवशाली वर्ष देख पा रहे हैं। इसमें मध्यप्रदेश शासन का प्रतिष्ठित तानसेन सम्मान की यात्रा भी प्रदर्शित है। जिसमें वर्ष 1980 का पहला तानसेन सम्मान जो कि सुप्रसिद्ध शहनाई वादक एवं भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पद्मभूषण कृष्णराव शंकर पंडित एवं सुश्री हीराबाई बड़ोदेकर को प्रदान किया गया था विशेष है। इसके अलावा गंगुबाई हंगल, भीमसेन जोशी, बालासाहेब पूँछवाले, कुमार गंधर्व जैसे मूर्धन्य संगीतज्ञों के तानसेन समारोह में प्रस्तुति के छायाचित्र आकर्षण बने हुए हैं।

ताना — रीरी ने मल्हार गाकर ताप को ठीक किया

तानसेन समाधि स्थल परिसर में देश के 10 सुप्रसिद्ध चित्रकारों का लाइव चित्रांकन शिविर आयोजित किया जा रहा है। इस शिविर में श्री लक्ष्मी नारायण भावसार – भोपाल, श्री जॉन डगलस – मुम्बई, श्री मानस जेना – भुवनेश्वर, श्री महेश चन्द्र शर्मा – दिल्ली, सुश्री उत्तमा दीक्षित – वाराणसी, श्री कनु पटेल – आनंद गुजरात, श्री पवन कुमावत – किशनगढ़ राजस्थान, श्री रामचन्द्र खरतमाल – पुणे, श्री अवधेश मिश्रा – लखनऊ, श्री वेद प्रकाश पालीवाल – हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हुए हैं। इस शिविर में स्वर सम्राट तानसेन रचित रागों को कैनवास पर मूर्त रूप दिया जा रहा है। श्री लक्ष्मी नारायण भावसार ने बताया कि मैं ऑयल मीडियम में राग तोड़ी पर चित्रांकन कर रहा हूं। वहीं, गुजरात के श्री कनु पटेल तानसेन और ताना — रीरी को लेकर अपना सृजन कार्य कर रहे हैं। ताना — रीरी दो बहनें थी, जो बड़नगर की रहने वाली थी। तानसेन ने दीपक राग गाकर अकबर दरबार में दीपक जलाए थे, तानसेन के दीपक राग से उत्पन्न ताप को ‘ताना रीरी’ ने मल्हार गाकर ठीक किया था। इसके अलावा वाराणसी के सुश्री उत्तमा दीक्षित ने राग भैरवी का चयन किया है। उन्होंने कैनवास पर दिखाया कि यह राग सुबह का है और सुबह के सौंदर्य, शांत वातावरण, पक्षियों का मधुर गीत, ध्यान एवं साधना को उकेरा है।

शास्त्रीय संगीत को न केवल सुनने, बल्कि देखने और महसूस करने का अनुभव

मोती महल, ग्वालियर में लॉस एंजिल्स निवासी श्री दीपांकर गोस्वामी के चित्रों की प्रदर्शनी “रागरंग” आयोजित की जा रही है। “रागरंग” के जरिए श्री गोस्वामी ने संगीत के विभिन्न रागों को अपने अनूठे दृष्टिकोण और रंगों के माध्यम से चित्रों में ढाला है। इस पहल का उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय संगीत को न केवल सुनने, बल्कि देखने और महसूस करने का अनुभव देना है। इस प्रदर्शनी में भारतीय शास्त्रीय संगीत के कई महत्पूर्ण राग सम्मिलित है। इनमें राग चांदनी केदार, राग कोमल ऋषभ, राग नायिकी कनाड़ा, राग भैरवी, राग देश, राग मालकौंस, राग शंकरा इत्यादि शामिल हैं। इस प्रदर्शनी की विशेषता यह है कि चित्रों में जिन रागों को चित्रित किया गया है, उसके साथ उन रागों को गाने या वादन करने वाले गायकों एवं वादकों के पोट्रेट भी गाते या वादन करते हुए उकेरे गए हैं। इन नामों में उस्ताद विलायत खां, गंगुबाई हंगल, पंडित जसराज, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जैसी शख्सियत शामिल हैं। प्रो.कीर्ति त्रिवेदी ने चित्रों का संयोजन और प्रस्तुतीकरण किया है। तानसेन संगीत समारोह देशभर के संगीत प्रेमियों और कलाकारों को एक साथ लाने का मंच है और इस साल दीपंकर गोस्वामी की भागीदारी इसे और भी खास बना रही है। मध्यप्रदेश टूरिज़्म बोर्ड द्वारा संचालनालय पुरातत्व के सहयोग से प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। श्री दीपंकर गोस्वामी हॉलीवुड एनीमेशन इंडस्ट्री के वरिष्ठ स्पेशल इफेक्ट्स निर्देशक हैं। वर्ष 2019 में ऑस्कर अवॉर्ड से सम्मानित फिल्म ‘स्पाइडरमैन : इन टु द स्पायडर वर्स’ की टीम का हिस्सा रहे है। फिल्मों के अलावा वे इलस्ट्रेशन और ग्राफिक डिजाइन की विधाओं में भी पारंगत हैं।

लाइव डेमो के माध्यम से अपनी कला का प्रदर्शन

तानसेन समाधि परिसर में शिल्प और कला प्रदर्शनी भी पर्यटकों और कला प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। यहाँ 12 प्रतिष्ठित शिल्पकार लाइव डेमो के माध्यम से अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। साथ ही डेल्बेर्टो के सहयोग से शिल्पकारों को डिजिटल मार्केटिंग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि वे अपनी कला को वैश्विक मंच तक पहुँचा सकें। यह समारोह न केवल मध्यप्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और शिल्पकला को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि संगीत, रंग और परंपरा के इस संगम को एक नई पहचान भी दे रहा है।

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