ऐतिहासिक महेश्वर किला की थीम पर बने भव्य एवं आकर्षक मंच पर बैठकर देश और दुनिया के सुप्रसिद्ध ब्रम्हनाद के साधक संगीत सम्राट तानसेन को स्वरांजलि व आदरांजलि अर्पित कर रहे हैं।
प्रातःकालीन सभा में प्रभु आराधन की ओज पूर्ण गायिकी ध्रुपद से संगीत सभा का शुभारंभ हुआ। इसे प्रस्तुत किया शंकर गंधर्व महाविद्यालय, ग्वालियर के गुरुओं एवं शिष्यों ने। उन्होंने अपनी प्रस्तुति के दौरान गणपति गणनायक सिद्धी…. बंदिश प्रस्तुत की। इस दौरान पखावज पर मुन्ना लाल भट्ट एवं हारमोनियम पर टिकेंद्र चतुर्वेदी ने संगत दी।
अगली प्रस्तुति ग्वालियर घराने के श्री रोहन पंडित के गायन की रही। रोहन पंडित, ग्वालियर के सुप्रसिद्ध पंडित परिवार की ही नई पीढ़ी के गायक कलाकार हैं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति के लिए राग अल्हैया बिलावल का चयन किया। इस राग में उन्होंने पारम्परिक रचना दैय्या कहां गए ब्रज के बसैया…. को सुमधुर एवं खुले कंठ से प्रस्तुत किया। उनकी अंतिम प्रस्तुति द्रुत की रचना कवन बटरिया कहां गई लो….रही। आपके साथ तबले पर श्री मनीष करवड़े ने संगत दी।
प्रातःकालीन सभा की अंतिम प्रस्तुति रबाब वादन की रही। माधुर्य से भरपूर जम्मू और कश्मीर के इस सुरीले वाद्ययंत्र की खुमारी कुछ इस तरह चढ़ी कि सुनने वाले आत्ममुग्ध हो गए। पहाड़ों के लोक से निकला यह वाद्य सुकून और अनन्त आनंद की अनुभूतियों से भरपूर है। इस वाद्य के माधुर्य का रसपान कराया दिल्ली के श्री दानिश असलम खां ने। उन्होंने अपनी प्रस्तुति के लिए राग शुद्ध सारंग चुना। इस राग को रबाब पर सुनना निश्चित रसिक श्रोताओं के लिए नया और अनूठा अनुभव रहा। आपके साथ तबले पर भोपाल के अंशुल प्रताप सिंह ने सधी हुई संगत दी।