ग्वालियर : ब्रह्मनाद के नवोदित साधकों ने जब राग- रागनियों में पिरोकर अपनी दानेदार एवं बुलंद आवाज में सुरीली तान खींची तो ऐसा लगा कि मानो ग्वालियर की घरानेदार गायकी के सुमधुर सुरों के फूल झर रहे हैं। लोकवाद्यों से सजे मंच पर ग्वालियर घराने के अनमोल योगदान और उसकी ऐतिहासिक यात्रा को नवोदित कलाकारों ने अपने गायन व वादन के माध्यम से अलग- अलग राग और ताल में प्रदर्शित कर जीवंत कर दिया। साथ ही ग्वालियर से जुड़ी नृत्य कलाओं की परंपराओं के सजीव दर्शन भी कराए।

अवसर था संगीत शिरोमणि तानसेन की याद में आयोजित होने जा रहे शताब्दी तानसेन समारोह के मंगलाचरण स्वरूप शुक्रवार की सांध्यबेला में भारतीय पयर्टन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान के सभागार में सजी “ग्वालियर के सांगीतिक वैभव” सभा का। “तानसेन स्वर स्मृति” के अंतर्गत राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय द्वारा यह कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया । इसमें ग्वालियर घराने की सांगीतिक विरासत और यात्रा को युवा कलाकारों द्वारा मंच से जीवंत रूप में दिखाया गया।

पूर्व मंत्री श्रीमती माया सिंह, संत कृपाल सिंह, संभाग आयुक्त श्री मनोज खत्री, कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान, राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय की कुलगुरु श्रीमती स्मिता सहस्त्रबुद्धे व श्री यशवंत इंदापुरकर सहित अन्य जनप्रतिनिधिगणों ने दीप प्रज्ज्वलित कर सभा का शुभारंभ किया। इस सुरमयी आयोजन के पूर्व मंत्री श्री ध्यानेन्द्र सिंह, स्मार्ट सिटी की सीईओ श्रीमती नीतू माथुर, आईआईटीटीएम के निदेशक श्री आलोक शर्मा, राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विवि के कुलसचिव प्रो. राकेश कुशवाह, श्री केशव पाण्डेय व जिला प्रशासन के अधिकारी सहित बड़ी संख्या में कला रसिक साक्षी बने।

एक ही मंच पर पिरोई विभिन्न शैलियों की माला

एक ही मंच पर एक साथ गायन की ध्रुपद शैली , बैजू बावरा की धमार शैली, ख्याल गायकी, सरगम, जयदेव की अष्टपदी एवं टप्पा व ठुमरी की एक साथ प्रस्तुति ने रसिकों के कानों में मिसुरी खोल दी। साथ ही वादन में स्वर और अवनद्ध वाद्यों की झंकार सुनाई दी, तो शास्त्रीय नृत्य में जयपुर, लखनऊ, ग्वालियर और रायगढ़ घराने के पारंपरिक कथक के साथ भरतनाट्यम आकर्षण का केंद्र रहे। इन सबके साथ लांगुरिया लोक नृत्य ने सम्पूर्ण प्रांगण को झंकृत कर दिया।

 

लगभग दो घंटे अवधि के इस कार्यक्रम की संकल्पना, संयोजन और निर्देशन राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय की कुलगुरू प्रो. स्मिता सहस्त्रबुद्धे का था। सह संयोजन विश्वविद्यालय के ही अवनद्ध वाद्य व स्वरवाद्य विभाग के विभागाध्यक्ष मनीष करवड़े द्वारा किया गया है। सूत्र संचालन श्री अतुल अधोलिया और डा. पारूल दीक्षित का रहा। मंच संचालन श्री अशोक आनंद ने किया।

राजा मानसिंह व सुर सम्राट तानसेन की ध्रुपद गायकी से हुई सभा की शुरूआत 

कार्यक्रम की शुरूआत शास्त्रीय गायन से हुई, जिसमें 15वीं शताब्दी में राजा मानसिंह तोमर और सुर सम्राट तानसेन द्वारा गायकी की ध्रुपद शैली को मंच से दिखाया गया। डा. अभिजीत सुखदाणे के निर्देशन में ध्रुपद की प्रस्तुति सुदीप भदौरिया ने राग भूपाली, ताल चौताल में निबद्ध ध्रुपद की अद्भुत प्रस्तुति दी। उनके साथ जयवंत गायकवाड ने पखावज पर संगत की। इसके बाद बैजू बावरा की धमार गायकी की प्रस्तुति डा. अभिजीत सुखदाण़े के निर्देशन में योगिनी तांबे ने राग रागेश्री में आज बृज में उड़त गुलाल… को अद्भुत अंदाज में प्रस्तुत कर कला रसिकों का मन मोह लिया।

 

इसी क्रम में ख्याल गायकी का सिलसिला शुरू हुआ। जिसमें पहली प्रस्तुति शाश्वती मंडल व श्री संजय देवले के निर्देशन में वल्लरी मोघे ने राग केदार में दी उनके साथ तबले पर डा. विकास विपट, हारमोनियम पर विवेक जैन ने संगति की। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए रोहन पंडित ने राग विहाग, ताल तिलवाड़ा में कैसे सुख सोवे…की प्रस्तुति दी। फिर उन्होंने बालम रे मोरे मन…को छोटे ख्याल में प्रस्तुत किया। इसी क्रम में हेमांग कोल्हटकर ने पं. बालासाहेब पूछवाले की रचना को राग रागेश्री कंस, तीन ताल में प्रस्तुत किया, जिसके बोल थे हे सुर साधे…। इसके बाद गीतिका उमड़ेकर मसूरकर ने पं. बालाभाऊ उमड़ेकर कुंडलगुरू की रचना को वीडियो के माध्यम से प्रस्तुत किया।

 

फिर त्रिवट या रास गायन शैली का प्रस्तुतिकरण हुआ, जिसे प्रो. स्मिता सहस्त्रबुद्धे के निर्देशन में अखिलेश अहिरवार ने राग भूपाली में मनमोहक रूप से पेश किया। इसी क्रम में उन्होंने पारंपरिक चतुरंग गीत शैली की सुंदर प्रस्तुति राग देस में देकर देखने और सुनने वालों का मन मोह लिया।

 

गायन के इस क्रम को और सुमधुर बनाते हुए जयदेवकृत गीत गोविंद की रचना को राग बसंत में हेमांग कोल्हटकर ने प्रस्तुत किया, जिसके बोल थे याही माधव याही केशव…।

 

इसी क्रम में उन्होनें प्रो.पीएल गोहदकर ने निर्देशन में ठुमरी को राग खमाज में प्रस्तुत किया। इसके बोल थे न मानूंगी मैं तो उन्ही के मनाए बिना…। इसके बाद राग खमाज में ही आज मोरी कलाई मुरक गई…की मनोहर प्रस्तुति देकर श्रोताओं का मन मोह लिया। अगले क्रम में गायकी की टप्पा शैली को हेमांग ने राग खमाज में प्रस्तुत किया।

 

इसी क्रम में ग्वालियर की गायकी में सरगम को राग यमन में, लक्षण गीत को राग अल्हैया बिलावल में, तराना को राग छाया नट में वैभवी फड़नीस व प्रथम जोशी ने प्रो. स्मिता सहस्त्रबुद्धे के निर्देशन में मनोहर प्रस्तुति दी।

अलग अलग रागों में हुआ वादन 

गायन के बाद अगला क्रम वादन का रहा, जिसकी शुरूआत स्वरवाद्य से हुई। इसमें पहले सरोद वादन की मनोहर प्रस्तुति हुई। इसके बाद दीपांशु शर्मा द्वारा पं श्रीराम उमड़ेकर के निर्देशन में राग चक्रधर में सितार वादन का प्रस्तुतिकरण किया गया। उनके साथ संजय राठौर ने तबले पर संगति की। इसी क्रम में अंकुर धारकर ने प्रवीण शेवलीकर के निर्देशन में वायलिन की अद्भुत प्रस्तुति राग झिंझोटी में दी। फिर अब्दुल हमीद द्वारा राग किरवानी में सारंगी का अद्भुत प्रस्तुतिकरण किया गया।

 

अवनद्ध वाद्य में जयवंत गायकवाड ने ताल चौताल में पखावज की मनमोहक प्रस्तुति दी। उनके बाद पांडुरंग तैलंग ने तीन ताल में तबला वादन कर उसकी समृद्ध परंपरा को दिखाने की कोशिश की।

कथक में दिखे कई घराने

नृत्य की मनमोहक प्रस्तुतियों में पहले कथक की घरानेदार परंपरा मंच से देखने को मिली। इसमें पहले शिवा नायक के निर्देशन में लक्षिता शर्मा, ज्योति तोमर ने ग्वालियरके पुरूषोत्तम नायक के घराने की परंपरा को मंच से प्रस्तुत किया। इसके बाद डा. तरूणा सिंह के निर्देशन में लखनऊ घराने के नृत्य को खुशी गुप्ता ने मनोहर रूप से प्रस्तुत किया। इसी क्रम में श्यामवीर कुशवाह, लावण्या गोयल ने डा. अंजना झा के निर्देशन में जयपुर की घरानेदार परंपरा को जीवंत किया। उन्होंने ताल पंचम सवारी में शुद्ध पारंपरिक बंदिशें, थाट, उठान, आमद, चक्करदार तिहाई, टुकड़ा, चक्करदार तोड़ा आदि की सुंदर प्रस्तुति दी। इसके बाद डा. मानव महंत के निर्देशन में रायगढ़ घराने के कथक में रूद्रताल की 11 मात्रा में मनोहर प्रस्तुति वैष्णवी पाराशर, मोक्षी गुप्ता और देवश्री सहस्त्रबुद्धे तिवारी ने दी।

भरतनाट्यम में अलारिपु

शास्त्रीय नृत्य के क्रम में शिवानी सिमोल्या ने डा. गौरीप्रिया के निदेर्शन में भरतनाट्यम में गणपति श्लोक का प्रस्तुतिकरण किया। इसी क्रम में उन्होनें तिश्र एकताल में अलारिपु का बेहतरीन प्रदशर्न किया।

मेरो खोय गयो बाजूबंद…

नृत्य के क्रम में अंतिम प्रस्तुति लोक नृत्य की रही। इसमें वैष्णवी जोशी, रेशु गुप्ता ने पारंपरिक परिधानों में लांगुरिया की अद्भुत प्रस्तुति देकर देखने और सुनने वालों का मन मोह लिया, जिसके बोल थे मेरो खोय गयो बाजू बंद…., चरखी चल रही बर के नीचे…।

कुलगुरू का किया सम्मान और सभी प्रतिभागियों को सौंपे प्रशस्ति पत्र 

कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान ने इस अद्भुत कार्यक्रम की परिकल्पना व संयोजन के लिये राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय की कुलगुरू प्रो. स्मिता सहस्त्रबुद्धे को कार्यक्रम के अंत में सम्मानित किया। साथ ही प्रस्तुति देने वाले सभी कलाकारों व आचार्यों को प्रशस्ति पत्र सौंपे।