Monday, December 23, 2024

गीता महोत्सव पर विशेष : श्रीमद् भगवद् गीता का वैश्विक प्रभाव

भोपाल :  मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मध्यप्रदेश में सांस्कृतिक पुनरुद्धार और आध्यात्मिक नवजागरण के लिए अनूठे प्रयासों की श्रृंखला शुरू की है। इसी कड़ी में राज्य सरकार द्वारा 11 दिसम्बर को गीता जयंती के अवसर पर सभी जिला मुख्यालयों में गीता जयंती महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।

इस विशेष अवसर पर यह जानना आवश्यक होगा कि श्रीमद् भगवद गीता एक अनूठा आध्यात्मिक मार्गदर्शी ग्रंथ है, भगवद् गीता जिसका प्रभाव पूरी दुनिया में फैल चुका है। भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य वचनों में सम्पूर्ण जीवन की व्याख्या है। संसार की समस्याओं और मनुष्य की व्यथाओं का समाधान है। “गीता” की महिमा का शाब्दिक वर्णन करना कठिन काम है। पाठकों के सुलभ संदर्भ के लिए श्रीमद् भगवद् गीता पर विश्व के महापुरुषों, महान वैज्ञानिकों, विद्वजनों और दार्शनिकों के विचारों का संकलन प्रस्तुत किया गया है।

“भगवान श्रीकृष्ण की कही हुई श्रीमद् भगवद् गीता के समान छोटे वपु (काया, शरीर) में इतना विपुल ज्ञानपूर्ण कोई दूसरा ग्रंथ नहीं है’’- महामना पं. मदनमोहन मालवीय।

“जब कभी संदेह मुझे घेरते हैं और मेरे चेहरे पर निराशा छाने लगती है; मैं क्षितिज पर गीता रूपी एक ही उम्मीद की किरण देखता हूं। इसमें मुझे अवश्य ही एक छन्द मिल जाता है, जो मुझे सांत्वना देता है। तब मैं कष्टों के बीच मुस्कुराने लगता हूँ’’- महात्मा गांधीजी।

“गीता हमारे ग्रंथों में एक अत्यन्त तेजस्वी और निर्मल हीरा है’’- लोकमान्य बालगंगाधर तिलक।

मशहूर जर्मन कवि, उपन्यासकार और पेंटर हरमन हेस के जीवन पर भी गीता का विशेष प्रभाव था। उनकी कालजयी रचना ‘सिद्धार्थ’ में यह स्पष्ट होता है। उनका कहना था ‘गीता की सबसे अच्छी विशेषता यह है कि यह जीवन के सही मायनों को पूरी वास्तविकता के साथ सामने रखती है।’

उन्नीसवीं सदी के मशहूर दर्शनशास्त्री और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता अल्बर्ट श्विट्ज़र मानते थे – ‘श्रीमद भगवद् गीता मनुष्य के जीवन पर बहुत गहरा असर डालती है। यह कर्मों के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति का संदेश देती है।’

स्विस मनोवैज्ञानिक कार्ल जुंग को विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान के लिए जाना जाता है। वे न सिर्फ मनोविज्ञान बल्कि दर्शन, साहित्य और धार्मिक अध्ययन में भी विशेषज्ञता रखते थे। उनका मानना था कि “मनुष्य को उल्टे वृक्ष के रूप में प्रदर्शन की अवधारणा बहुत पहले से ही मौजूद थी, जिसे बाद में सामने लाया गया। अपने वक्तव्यों में कही गई प्लेटो की वह बात कि “मनुष्य सांसारिक नहीं बल्कि स्वर्गीय पौधा है, जो ब्रह्माण्ड से सिंचित होता है। यह वैदिक अवधारणा है और गीता के 15वें अध्याय में इसे स्पष्ट तौर पर कहा गया है।“

उन्नीसवीं सदी के ही मशहूर अंग्रेजी साहित्यकार आल्डस हक्सले ने कहा था – “मनुष्य में मानव मूल्यों की समझ पैदा करने के लिए गीता सर्वाधिक व्यवस्थित ग्रंथ है। शाश्वत दर्शन के विषय में यह अब तक की सबसे स्पष्ट और व्यापक प्रस्तुति है। यह सिर्फ भारत के लिए नहीं है बल्कि इसका जुड़ाव पूरी मानवता से है।’’

उन्नीसवीं सदी के विख्यात अमेरिकी निबंधकार और साहित्यिक हस्ती इमर्सन के जीवन पर गीता का बड़ा प्रभाव था। उनका मानना था, “श्रीमद भगवद् गीता के साथ मेरा दिन शानदार बीता। यह अपने तरह की पहली पुस्तक है। यह किसी और समय और परिस्थितियों में लिखी गई, लेकिन यह हमारे आज के सवालों और समस्याओं के भी जवाब पूरी स्पष्टता के साथ देती है।“

ऑस्ट्रियाई दार्शनिक और साहित्यकार रुडॉल्फ स्टीनर के जीवन को गीता ने व्यापक रूप से प्रभावित किया था। उनका मानना था कि भगवद् गीता जैसी अप्रतिम रचना को समझने के लिए बस हमें स्वयं को उसके साथ लय बिठाने की जरूरत है।’

मशहूर अमेरिकी दार्शनिक और साहित्यकार हेनरी डेविड थोरो पर गीता का प्रभाव उनके साहित्य और सामाजिक कार्यों में परिलक्षित होता है। वे कहते थे कि “प्राचीन भारत की सभी स्मरणीय वस्तुओं में गीता से श्रेष्ठ कोई भी दूसरी वस्तु नहीं है। गीता में वर्णित ज्ञान ऐसा उत्तम व सर्वकालिक है, जिसकी उपयोगिता कभी भी कम नहीं हो सकती।”

भारतीय मनीषियों के अलावा कई विदेशी विद्वानों ने भी गीता के महत्व को समझा और अपने जीवन में इसके सिद्धांतों को लागू किया। यह महान पवित्र ग्रंथ गीता का ही असर था कि ईसाई मत मानने वाले कनाडा के प्रधानमंत्री मिस्टर पियर ट्रूडो गीता पढ़कर भारत आये। उन्होंने कहा था कि जीवन की शाम हो जाए और देह को दफनाया जाए, उससे पहले अज्ञानता को दफनाना जरूरी है।

ओपेनहाइमर : भगवद् गीता से कैसे प्रभावित हुए?

बीबीसी ने समकालीन इतिहास पर अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने परमाणु बम विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभाई थी, जिसने द्वितीय विश्व युद्ध की दिशा बदल दी थी। ओपेनहाइमर ने संस्कृत भाषा सीखी और श्रीमद् भगवद गीता को अपनी पसंदीदा पुस्तकों में से एक माना। जब द क्रिश्चियन सेंचुरी के संपादकों ने उनसे पूछा कि वे कौन सी किताबें हैं, जिन्होंने उनके दार्शनिक दृष्टिकोण को सबसे ज्यादा प्रभावित किया, तो चार्ल्स बौडेलेयर की पुस्तक “लेस फ्लेर्स डू माल” को पहला और “श्री भगवद गीता’’ को दूसरा स्थान मिला।

सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी ओपेनहाइमर को बर्कले में संस्कृत के प्रोफेसर आर्थर डब्ल्यू राइडर ने संस्कृत से परिचित कराया था। उसके बाद उन्हें गीता से परिचित कराया गया था। जुलाई 1945 में न्यू मैक्सिको के रेगिस्तान में पहले परमाणु बम के विस्फोट से दो दिन पहले रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने  गीता  का एक श्लोक सुनाया। इतिहास बदलने वाली घटना से कुछ घंटे पहले, “परमाणु बम के जनक” ने संस्कृत से अनुवादित एक श्लोक को पढ़कर अपना तनाव दूर किया, जिसका हिंदी अनुवाद इस प्रकार है –

“युद्ध में, जंगल में,

पहाड़ों की चोटी पर

अन्धकारमय महान सागर पर,

भालों और बाणों के बीच,

नींद में, उलझन में,

शर्म की गहराई में,

मनुष्य द्वारा पहले किये गए अच्छे कर्म ही उसकी रक्षा करते हैं।“

श्रीमद् भगवद् गीता ने पश्चिम की दुनिया को गहरा प्रभावित किया है। गीता दर्शन को जानने के बाद पश्चिम के विद्वानों ने गीता के जीवन दर्शन को अपनाने के लिए अपनी बौद्धिक ऊर्जा लगा दी। दरअसल वे किसी वैज्ञानिक उपलब्धि की खोज में नहीं थे। वे इससे भी आगे विकारों से रहित मानव मन और आत्मिक शांति की खोज में थे। इसका समाधान उन्होंने श्रीमद् भगवद् गीता में पाया। इन विद्वानों में दार्शनिक इमैन्युअल कांड (1724-1804), हर्डर (1744-1805) फिटश (1762-1814), हीगल (1770-1831), श्लेगल (1772-1829) शिलर (1759-1805) और गोएथे (1749-1832) प्रमुख हैं।

फ्रेडरिक वान श्लेगल ने गीता का अनुवाद किया। जर्मन के अग्रणी विद्वान बेरन विल्हेल्म ने 1821 में संस्कृत का अध्ययन शुरू किया। गीता पढ़ने के बाद उन्होंने भगवान का आभार माना कि उन्हें लंबा जीवन दिया, ताकि वे सर्वाधिक प्रेरणादायी पुस्तक को आत्मसात कर पाए। उन्होंने 1825 में अकादमी ऑफ सिएंस के समक्ष गीता पर अपना प्रसिद्ध व्याख्यान दिया था।

वर्ष 1820 में ओ फ्रेंक विद्वान ने गीता का पहला लैटिन अनुवाद प्रकाशित किया। इसके बाद 1822 में ए.डब्ल्यू. वान श्लेगल ने पहली बार लैटिन में सम्पूर्ण अनुवाद प्रकाशित किया। सर विलियम जोन्स (1756-1794) भारत में 10 साल रहे । वे पहले अंग्रेज अधिकारी थे, जिन्हें संस्कृत का सम्पूर्ण ज्ञान था। उन्होंने गीता, रामायण, महाभारत और संस्कृत के अन्य क्लासिकल साहित्य जैसे कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम, ऋतुसंहार और जयदेव के “गीत गोविंदम्” से इंग्लैंड के लोगों को परिचित कराया। वे एशियाटिक सोसाइटी के पहले अध्यक्ष बने और चार्ल्स विलकिंस को संस्कृत पढ़ने बनारस भेजा। उन्होंने चार्ल्स विलकिंस द्वारा अनुवादित गीता – “भगवद गीता – डायलॉग ऑफ श्री कृष्णा एंड अर्जुन” का प्रकाशन कराया। इसकी भूमिका उन्होंने खुद लिखी थी। यह 1783 का वर्ष था।

सर एडविन अर्नाल्ड ने 1885 में गीता का अनुवाद किया, जिसका शीर्षक था “द सॉन्ग सेलेशल”। इसी को पढ़कर महात्मा गांधी ने गीता के महत्व को समझा। पश्चिम के कई महान कवि लेखक भगवद् गीता से प्रेरित हुए हैं। इनमें एस टी कोलरिज, पी.बी. शैली, थॉमस कार्लाइल, अमेरिकन कवि एमर्सन, रॉबर्ट ब्राउनिंग, अलफ्रेड टेनिसन, विलियम ब्लैक, टी एस इलियट और डब्ल्यू.बी. यीटस और भी बहुत कवि दार्शनिक हैं, जिनकी एक लंबी सूची है। डॉ. एस. राधाकृष्णन ने गीता की व्याख्या कर स्टालिन का मन बदल दिया था। विनोबा भावे ने कहा था “गीता प्रवचन मेरी जीवन की गाथा है और वही मेरा संदेश है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

error: Content is protected !!