प्रशांत सोनी
आज हम बात करेंगे समाधिस्थ, सेवक, आकांक्षी नंदी की। ये वही नंदी हैं जो केवल शिव के हैं। जब कभी किसी भक्त को उपमा देनी होती है तो कहा जाता हैं कि ये भक्त अपने आराध्य में वैसी ही भक्ति रखते हैं जैसी कि “शिव में नंदी“।
शिव के नंदी या नंदी के शिव, ये भक्त और भगवान नहीं, एक दूसरे के पूरक भी हैं। यदि कही शिव हैं तो हम आसपास नंदी खोजते हैं और अगर कही नंदी हैं तो शिव पास ही हैं, ऐसा आभास होता है।
कथा इस प्रकार हैं कि ऋषि शिलाद के मन में पुत्र प्राप्ति की भावना हुई। एक ऐसा पुत्र जिसकी मृत्यु न हो। इसके लिए उन्होंने देवराज इंद्र की तपस्या की। देवराज प्रसन्न हुए पर जब उन्होंने देवराज को अपना भाव बताया तो देवराज उनसे कहते हैं- ऐसा तो केवल शिव की कृपा से ही संभव है। ऐसा जानकर उन्होंने शिव की आराधना प्रारंभ की। ओघंड दानी प्रसन्न हुए, उन्हें अयोनिज पुत्र का वरदान दिया।
ऋषि शिलाद अपने आश्रम पर आए और आनंद में आश्रम पर यज्ञ की तैयारी प्रारंभ की। जब यज्ञ वेदी को तैयार करने के लिए खोदना शुरु किया तो वहा से एक बालक प्राप्त हुआ। सभी दिशाओं में आनंद हुआ। ऋषि और सभी लोग बहुत ही आनंदित हुए। सभी ने आनंद हो, आनंद हो का उल्लास किया, इस प्रकार उस पुत्र का नाम नंदी रखा गया।
ये तो हुई नंदी के अवतार की कथा अब जानते हैं कि क्या हैं नंदी
नंदी ध्यान का साक्षात स्वरूप है। अपने आराध्य, अपने पिता रूप शिव की निरंतर प्रतीक्षा का प्रतीक। जी, हां प्रतीक्षा कि शिव मंदिर से बाहर आएंगे, उनको देखने और देखते रहने की आकांक्षा।
वे शिव के इतने प्रिय हैं कि एक प्रसंग के अनुसार, जब स्वर्ग के लिए युद्ध करते हुए राक्षसों द्वारा नंदी के प्राण जाते हैं तब शिव अपने नंदी के लिए स्वर्ग के सर्वनाश के लिए त्रिशूल उठा लेते हैं। तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य क्षमा मांगते हुए संजीवनी विद्या द्वारा नंदी को जीवित करते हैं।
मैं फिर से वहीं आता हूं कि नंदी वे हैं, जिनकी उपमा दी जाती हैं।भक्ति ऐसे कीजिए कि आपके और आपके आराध्य का संबंध शिव और नंदी का हो जाए।
क्रमशः