ग्वालियर। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर आधार फाउंडेशन के तत्वावधान में विज्ञान का हमारे जीवन में महत्व विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में जीवाजी विश्वविद्यालय के प्रो. सपन पटेल मौजूद थे। जबकि फिजिक्स विषय के शिक्षक एमएस राजपूत और गणित के शिक्षक एडवोकेट एमपी सिंह और आधार फाउंडेशन के अध्यक्ष दिलीप शर्मा विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थे।
अलकापुरी स्थित आधार फाउंडेशन के सभागार में बुधवार को कार्यशाला हुई। कार्यशाला की शुरुआत अतिथियों के स्वागत के साथ हुई। संस्था के कोषाध्यक्ष धर्मेन्द्र शर्मा ने मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन स्नेहलता गुप्ता ने और आभार प्रदर्शन प्रशांत सोनी ने किया। इस दौरान अनेक छात्र-छात्राएं, शोधार्थी एवं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवा मौजूद थे।
मुख्य अतिथि प्रो. पटेल ने विषय पर मागदर्शन करते हुए कहा कि तरंग जब एक से दूसरे वातावरण में जाती है तो उसकी आवृति में परिवर्तन आता है। नोबल पुरस्कार विजेता सीवी रमन की इस खोज को रमन्स इफैक्ट के रूप में सब जानते हैं। जीवन में विज्ञान का उतना ही महत्व है जितना शरीर का संचालन करने के लिए भोजन जरूरी है।
प्रो. पटेल ने कहा कि मैं बॉयो साइंस का विद्यार्थी रहा हूं। वर्तमान में मनोविज्ञान विषय पर भी काम कर रहा हूं। एक समय ऐसा भी था जब पूरे विश्व में मनोविज्ञान को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं थी। जबकि भारत की वैज्ञानिक दृष्टि और साहित्य को लेकर हम बात करें तो दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी नालंदा में थी, जहां अनगिनत पुस्तकों में भारतीय ज्ञान एकत्रित था। अगर हम आधुनिक विज्ञान और पुरातन पौराणिक मान्यताओं को समझें तो विज्ञान ने बाद में प्रूव किया लेकिन हमारे ग्रंथ सैकड़ों वर्ष से सूर्य की दूरी को अपने श्लोक, चौपाई सहित श्रुतियों में संजोये हुए हैं।
भारतीय ज्ञान कहता रहा है कि सूर्य से प्रथ्वी की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर से अधिक है, जबकि विज्ञान ने भी लगभग इतनी ही दूरी को परिभाषित किया है। विज्ञान कितना गूढ़ है इसको भारत सिद्ध कर चुका है। अगर हम वर्तमान विज्ञान की बात करें तो हम लिविंग और नान लिविंग के बीच के लिंक के रूप में विज्ञान को मानते हैं। शरीर के भाग का 30 प्रतिशत हिस्सा सॉलिड और 70 प्रतिशत लिक्विड है। यह तत्वज्ञान वेदों में न जाने कबसे उल्लेखित है। उन्होंने कहा कि ज्ञान के मामले में भारत का कोई सानी नहीं है। लेकिन हम अन्य सभ्यताओं के गुलाम रहे, जिसने हमें हमारी विरासत से दूर कर दिया और विस्मृति होने के बाद नई पीढ़ी उस ज्ञान को समेट नहीं पा रही। अभी भी समय है, अगर कोई कोशिश शुरू करे तो वहां तक पहुंचा जा सकता है।
अगर विज्ञान को जीवन शैली से जोड़ें तो शिक्षित होने के बाद हम कोई भी काम शुरू कर सकते हैं। महान वैज्ञानिक सीवी रमन की तरह अपनी अलग पहचान बना सकते हैं। प्रत्येक विद्यार्थी बस यह करे कि अपने लक्ष्य की ओर जाते समय उस बारीक बिंदु को पकड़ो और समझो जहां हमें लगता है कि अब असफल हो जाएंगे। असफलता जहां दिख रही हो, उस बिंदु पर आत्मविश्वास की चोट मारो, इससे भविष्य की राह में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने में आसानी होगी और सफलता जरूर मिलेगी।
इस दौरान शिक्षक एमपी सिंह ने कहा कि जैसे विपरीत परिस्थितियों में सीवी रमन ने अपने लक्ष्य को हासिल किया, वैसे ही कोई भी कर सकता है। जरूरत बस यह है कि कोई भी काम करो, इतनी शिद्दत से करो कि हमारा काम स्पेशल हो। प्रत्येक विद्यार्थी में प्रतिभा है, बस सही दिशा में प्रतिभा को लगाने की आवश्यकता है।