sanjay bhardwaj
जीवन हमारे कर्मों का बाजार है, जो, जो हमने अनंत जन्मों से किया है, और आज तक करते आ रहे हैं, उसी का फल हम भोग रहे हैं, ना हमें कोई दुखी करता है, ना सुखी करता है, ना परमात्मा का इसमें कोई रोल है, केवल, केवल हमारी करनी हमारा जीवन है, गीता में कृष्ण बहुत सुंदर वचन कहते हैं , हम अपने लिए सुंदर चाहते हैं, लेकिन दूसरे के साथ हम अलग व्यवहार करते हैं, दूसरा है, ही नहीं, जो हम दूसरे के साथ करते हैं, वही हमारे पास लौट कर आता है, यही प्रकृति परमात्मा का सिद्धांत है, यही उसका नियम है, ध्यान ज्ञान की यही परिभाषा है, अपने निज स्वरूप को प्राप्त करने की एकमात्र यही कुंजी है, यही राज है, जो तुम अपने लिए चाहते हो वही दूसरे के लिए उपलब्ध कराओ, तब हमारे जीवन का उद्धार हो सकता है, हम अपने निज स्वरूप को प्राप्त कर सकते हैं, अन्यथा दुनिया की कोई ताकत हमें अपनी निजता में प्रवेश नहीं करा सकती, हम स्वयं अपने निर्माता है, अपने जीवन को सुंदर करें, या कुरूप, मनुष्य के हाथ में केवल कर्म करना है, बाकी फल उसकी मर्जी से आएंगे, निज स्वरूप पहले से ही भीतर मौजूद है, लेकिन हमने मनमाने आचरण के कारण उसको दूषित कर दिया है, जब तक मन पूर्ण रूप से निर्मल स्वच्छ नहीं हो जाता, तब तक निज स्वरूप का दर्शन हमारे भीतर नहीं हो सकता, हम अपने से ही वंचित रह जाते हैं, और यही मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है, कि सब जानता है, लेकिन स्वयं से वंचित है,जीते जी मरना होगा कैसे मारोगे, मैं है अहंकार है, दूसरा है, जब तक यह क्षमता भीतर, बाहर, पैदा नहीं हो जाती, निर्मलता नहीं आ जाती तब तक परमात्मा तत्व में मिल नहीं सकते, उसका एक ही सिद्धांत है, उसके जैसा हो जाना संसार का मिट जाना निर्मल शुद्ध स्वच्छ हो जाना, वही परम पुरुष समस्त समाधान समाधी को उपलब्ध होता है, जो निज स्वरूप में ठहरकर उस तत्व में विलीन हो गया, परमात्मा तत्व हो गया, सभी मित्रों को शुभकामनाए सबका जीवन सुंदर सुखी हो..
मां मनु