उत्तर मध्य रेलवे, झाँसी मंडल में धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के उपलक्ष्य में मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय में चतुर्थ जनजातीय गौरव दिवस मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मंडल रेल प्रबंधक दीपक कुमार सिन्हा ने दीप प्रज्वलन एवं भगवान बिरसा मुंडा के चित्र पर माल्यार्पण कर किया। माल्यार्पण उपरान्त दीपक कुमार सिन्हा ने भगवान बिरसा मुंडा के जीवन व उनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान तथा आदर्शों पर विचार रखे।
इस अवसर पर मंडल रेल प्रबंधक ने अपने उद्बोधन में कहा भगवान बिरसा मुंडा ने मात्र 25 वर्ष की आयु में बहुत ही विषम परिस्थितियों में रहते हुए लोगों को संगठित कर अंग्रेजों से लोहा लिया तथा सामाजिक परिस्थितियों से ऊपर उठकर देश की स्वतंत्रता के लिए आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि महापुरुषों की जयंती मनाने का उद्देश्य मुख्य रूप से उनकी कुर्बानियों और अच्छे कार्यों को याद करना तथा उनके आदर्श और भावनाओं को अपने जीवन में उतारकर परिवार के सदस्यों और समाज को प्रेरित करना है। कार्यक्रम में सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। कार्यक्रम में अपर मंडल रेल प्रबंधक (इन्फ्रा) पीपी शर्मा, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक कुलदीप स्वरुप मिश्र, वरिष्ठ मंडल कार्मिक अधिकारी ब्रजेश कुमार चतुर्वेदी, वरिष्ठ मंडल अभियंता (समन्वय) आशुतोष चौरसिया, वरिष्ठ मंडल परिचालन प्रबंधक अखिल शुक्ल, वरिष्ठ मंडल सुरक्षा आयुक्त विवेकानंद नारायण, वरिष्ठ मंडल वित्त प्रबंधक श्री संतोष कुमार सहित अन्य सभी विभागाध्यक्ष एवं कर्मचारी उपस्थित रहे।
धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा का जीवन परिचय
बिरसा मुंडा (15 नवम्बर 1875 9 जून 1900) एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक थे। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए। भारत के आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं और ‘धरतीबा’ के नाम से भी जाना जाता है।
19 वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों ने कुटिल नीति अपनाकर आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करने लगे। हालाँकि आदिवासी विद्रोह करते थें, लेकिन संख्या बल में कम होने एवं आधुनिक हथियारों की अनुपलब्धता के कारण उनके विद्रोह को कुछ ही दिनों में दबा दिया जाता था। यह सब देखकर बिरसा मुंडा विचलित हो गए, और अंततः 1895 में अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व- व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ दी। यह मात्र विद्रोह नहीं था। यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था।
भारत सरकार ने आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को याद करने के लिए बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में घोषित किया है। इस दिन को भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी को याद किया जाता है।