भक्तराज यमराज
By Prashant Soni
धर्म आध्यात्म: भक्तराज यमराज की जो की भगवान के बारह प्रिय जनों में आते है जिन्हें बारह भागवत भी कहते है, यमराज भी उन्ही मे से एक है ये इस श्रेणी मे स्वयं ब्रह्मा, शिव एवं नारद आदि के समान हरि के प्रिय भी है और पूजनीय भी।
एक प्रसंग के अनुसार यमराज एवं शनि सूर्य के पुत्र इसलिए भी है क्योंकि यमराज आम ओर खास मे भेद नहीं करते जीवित रहते हुए दंडविधान शनि देव देते है एवं मृत्यु पश्चात शस्त्र अनुसार यमराज।
प्रसंग एसे है कि एक बार यमराज के दूत किसी जीव को लेने गए थे, पर जब उस जीव ने अपने अंत समय मे अपने पुत्र नारायण का नाम लिया, तो वह भगवान के पार्षद आ गए थे ओर वे उस जीव को यमराज के दूतों से बचते हुए अपने साथ भगवान के धाम को ले जा रहे थे, तो यम दूतों ने भगवान नारायण के पार्षदों को समझाया की वह जीव आपके नारायण का नहीं अपने पुत्र का नाम ले रहा था, अतः मरने वाले जीव को मुक्ति नहीं यमलोक मे उचित दंड मिलेगा। परंतु भगवान के पार्षद यह कहते है की ये तो अपने बेटे का नाम नारायण तब ले रहा है जब की यह अभी का ही है परंतु हमारे भगवान तो नारायण सहृष्टि से पूर्व के ही है अतः यह हमारे साथ ही जायगा कहते हुए जीव को अपने साथ ले गए, एवं यम के दूत असहाय होकर वापस आते है।
जब यमराज के दूत वापस अपने लोक को ये तो वे यमराज जी से पूछते है कि – महाराज हमे नारायण नाम की महिमा बताइए जिससे की गलती से या बिना मन से नाम लेने वाला भी कर्म बंधन से मुक्त हो जाता है। तब यमराज जी उसको एक श्लोक सुनते हुए कहते है की यह पर भगवान का नाम ना ही लो अगर किसी ने सुन लिया तो तुरंत मुक्त हो जायगा ओर यमपुरी खाली हो जायगी, पहले उन लोगों का नाम सुनो जो भगवान के नाम की महिमा जो लोग थोड़ा बहुत जानते है उनमे हैं – ब्रह्माजी, शिव जी, नारद जी, सनत कुमार, कपिल ऋषि, मनु ऋषि, प्रह्लाद जी, जनकजी, भीष्म जी, महाराज बलि, व्यास जी एवं मैं, इसके अलावा तो भगवान के नाम ही महिमा स्वयं भगवान भी नहीं बात सकते।
यमराज जो भी करते है वह भागवत मर्यादा के अनुकूल होकर ही करते है, फिर चाहे वे किसी के पुण्य दान कर देने पर नारायण के आदेश से पुरी यमपुरी खाली करने का हो या फिर न्याय विधान से सही होने पर भी शिव द्वारा प्राप्त आज्ञा की पूर्ति के लिए शिव ओर नारायण मे भेद न करते हुए शिव के आदेश की मर्यादा का पालन करना।
यमपुरी मे प्रवेश के चार द्वार है इसमे से दक्षिण द्वार से आने वालों को यमराज अत्यंत भयानक दिखते है, वे उनके पापों का दंड देने हेतु तत्पर होते है, इसके अतिरिक अन्य द्वार से आने वालों के लिए यमराजजी के दर्शन अलग होते है वे उन्हे भागवत ही दिखते है, भक्त दिकते है, यमराजजी के दर्शन भगवान के भक्त के रूप मे करने से पाप का लोप होता है, यम द्वितीया पर यमुना जी मे भी बहन के साथ मे स्नान करने से भी जीव पापों से मुक्त होता है ।
स्वयम्भुर्नारद:शम्भु कुमार: कपिलोमनु: ।
प्रह्लादोजनको भीष्मो बलिर्वैयासकिर्वयम ।।