Friday, January 31, 2025

पौराणिक महत्व के शनिदेव मंदिर से 50 किलोमीटर दूर जौरासी में लोकार्पित होगा महालक्ष्मी मंदिर

 

धर्मेन्द्र त्रिवेदी”दिव्य”

ग्वालियर। जल्द ही ग्वालियर शहर को लगे वास्तुदोष से मुक्ति मिल सकती है। धन की देवी महालक्ष्मी की प्राण प्रतिष्ठा के साथ इस दोष को दूर करने में सहायक सिद्ध होंगीं। लगभग 15 करोड़ रुपए की लागत से बनकर अष्ट महालक्ष्मी मंदिर बनकर तैयार हो चुका है। जूना अखाड़ के पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरि की अगुवाई में प्राण प्रतिष्ठा होगी। जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आयोजन की अध्यक्षता करेंगे। लोकार्पण के समय प्रदेश और देश की अन्य प्रमुख हस्तियों की मौजूद रहने की भी संभावना है।

जनश्रुति है कि न्याय के देवता शनि को जब रामदूत हनुमान ने फैंका तो वे ऐंती स्थित पहाड़ पर गिरे थे। इसके बाद से इसी क्षेत्र में उनका विग्रह प्रतिमा रूप में है। क्षेत्र का नाम भी शनिचरा पड़ गया। प्रत्येक शनिवार मंदिर पर हजारों लोगों की भीड़ अभिषेक करने के लिए आती है ताकि उन पर लगे शनि के प्रकोप से शांति मिल सके। रियासतकाल में शनिमंदिर का महत्व बढ़ा लेकिन 1988 में देश के उद्योगपति घराने बिड़ला द्वारा शहर के ईशान कोण में सूर्य मंदिर की स्थापना कराई गई। सूर्य और शनि पिता-पुत्र माने जाते हैं और कहा जाता है कि इन पिता-पुत्र में आपसी बैर है, जिसकी वजह से शहर पर शनि की कोप दृष्टि पड़ी है। इसी वजह से वास्तुदोष उत्पन्न हुआ और धीरे-धीरे शहर की आर्थिक विकास दर में कमी आती गई है। इस दोष को दूर करने के लिए शनि और सूर्य मंदिर के बीच महालक्ष्मी मंदिर स्थापित करने का प्रयास किया गया था लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हो सका। अब शनि मंदिर से दक्षिण-पूर्व कोण में ग्वालियर शहर से करीब 20 किलोमीटर और शनि मंदिर से लगभग 50 किलोमीटर दूर जौरासी में महालक्ष्मी मंदिर बनाने की नींव रखी गई थी। अब यह मंदिर बनकर तैयार है और जल्द ही श्रद्धालुओं को मंदिर में महालक्ष्मी के दर्शन होने लगेंगे।

ये हैं अष्ट महालक्ष्मी

जौरासी हनुमान मंदिर परिसर के पीछे बनकर तैयार हुए मंदिर में देवी महालक्ष्मी सहित आठ प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। मुख्य प्रतिमा का विग्रह 6 फीट ऊंचाई का है। जबकि अन्य प्रतिमाएं 2-2 फीट की हैं। अष्ट महालक्ष्मी में देवी महालक्ष्मी के अलावा आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, जय लक्ष्मी, विद्या लक्ष्मी के विग्रह की आराधना की जाती है। सभी प्रतिमा विग्रह जयपुर से मंगाए गए विशेष संगमरमर से तैयार किए गए हैं।

इन विद्वानों के मंत्रोच्चार के साथ होगी प्राण प्रतिष्ठा

प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय-नई दिल्ली के आचार्य एवं विभाागाध्यक्ष वेदमूर्ति पंडित गोपाल प्रसाद शर्मा और शासकीय संस्कृत महाविद्यालय गोरखपुर के आचार्य पंडित प्रवीण कुमार पांडेय के आचार्यत्व में होगी। विधिवत मंत्रोच्चार के लिए वेदपाठी ब्राह्मणों को भी आमंत्रित किया गया है। प्राण प्रतिष्ठा समारेाह के बाद लगभग 1 लाख लोगों के भंडारे की व्यवस्था भी की गई है।

ऐसा बना है मंदिर

लगभग तीन बीघा भूमि पर बने मंदिर के भूतल पर सत्संग भवन बनाया गया है। ऊपरी तल पर प्रतिमाएं स्थापित होनी हैं। संतों के निवास के लिए संत निवास बनाया गया है।

एक नजर में जाने प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तिथियां

-एक मार्च को प्रायश्चित एवं कलश यात्रा निकाली जाएगी।
-दो मार्च को पंचांग पूजन एवं मंडपम प्रवेश कराया जाएगा।
-तीन मार्च को मंडपम बेदी पूजन और जलाधिवास होगा।
-चार मार्च को मंडपम पूजन, अग्नि स्थापन, अन्नवास, फलाधिवास, पुष्पाधिवास, मिष्ठान्नाधिवास, प्रसाद और फिर वास्तु पूजन होगा।
-पांच मार्च को मंडपम पूजन, मूर्तिस्पंदन, नगर भ्रमण, मूर्ति न्यास और शैयाधिवास होगा।
-छह मार्च को मंडपम पूजन और प्राण प्रतिष्ठा, पूर्णाहुति और देव विसर्जन होगा।
-सात मार्च को वेद पाठी ब्राह्मणों के मंत्रोच्चार के साथ लोकार्पण एवं भंडारा होगा।

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