Wednesday, January 15, 2025

हमारे स्वाभिमान की विरासत बताती है लोकेन्द्र सिंह की हिन्दवी स्वराज दर्शन

यह पुस्तक किसी भी बुक स्टोर पर जाकर पुस्तक विक्रेताओं से भी मांग सकते हैं। ग्वालियर में यह पुस्तक नई सड़क स्थित राष्ट्रोत्थान न्यास भवन परिसर में संचालित पुस्तक केन्द्र पर भी उपलब्ध है। राष्ट्राोत्थान न्यास के पुस्तक केन्द्र पर विधिवत राशि जमाकर पुस्तक प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफार्म अमेजन पर भी उपलब्ध है।

धर्मेन्द्र त्रिवेदी”दिव्य”

अगर आपको सहज ही शब्दों से तादात्म्य बैठाते हुए किसी लेखक या किताब से संवाद करते हुए साहित्य की यात्रा का दर्शन करना है तो स्वाभिमान की धरा ग्वालियर से निकले विनम्र छात्र, पत्रकार, साहित्यान्वेषी लेखक लोकेन्द्र सिंह की हिन्दवी स्वराज जरूरी पढऩी चाहिए। यह पुस्तक यात्रा वृतांत विधा में लिखी गई है, लेकिन यह यात्रा इतनी सधी हुई है कि आपको शब्दों के माध्यम से भारत की विरासत से परिचित कराती चलेगी। एक बार पढऩा शुरू कर दिया तो फिर अगले पृष्ठ पर पहुंचने में रुचि बढ़ेगी ही। लेखक ग्वालियर से हैं तो लेखन में ग्वालियरी पुट मिलना स्वाभाविक ही है।
तो बात करते हैं हिन्दवी स्वराज पुस्तक की। यह पुस्तक हमें स्वराज की अवधारणा और शौर्य की पराकाष्ठा के प्रतीक रहे दुर्गों से संबंध स्थापित कराती है। पुस्तक के केन्द्र में दुर्ग हैं तो यह निश्चित ही दुर्गों में हुए पराभव और वैभव की कहानी भी कहेगी ही। भारत में तुर्क, अरब, मंगोल जैसे बड़े आक्रांता आते रहे और भारत उन्हें आत्मसात करता रहा लेकिन ये सब स्थायित्व नहीं पा सके। मुगल जब भारत आए तो साम्राÓय विस्तार की मानसिकता के साथ ही आए थे। मुगल कहें या फिर विदेशी आक्रांता कहें ये निष्ठुर, निर्मम, अमयाॢदत आक्रांता अत्याचार, भय, दासता को ही प्रमुख हथियार मानते थे। इनके अत्याचार से व्यथित, त्रसित अंधकार से भारत का लगभग हर हिस्सा प्रताडि़त हो उठा था। ऐसे में कुछ दुर्ग थे, जिनकी प्राचीरों से आक्रांताओं की जड़ों को हिलाने की हुंकार आसमान में गूंजी। हिन्दवी स्वराज दर्शन यात्रा शैली में ऐसी पुस्तक है जो न सिर्फ प्राचीरों तक ले जाएगी, बल्कि यह पुस्तक स्वराज की रणनीति और स्वाभिमान की मशाल जलाने वाले सुदृढ़ दुर्गों के कक्षों से संवाद स्थापित कराएगी। हिन्दू ह्रदय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिन दुर्गों में मराठा वीरों के ह्रदय का ताप मिटाकर आत्मविश्वास भरा, उन दुर्गों तक भी लोकेन्द्र सिंह के शब्द यात्रा कराते हैं।

दरअसल, हिन्दवी स्वराज दर्शन सिर्फ पुस्तक नहीं है, यह हमें भारतीय स्थापत्य कला के बेहतरीन स्मारक हमारे दुर्गों की जानकारी दे रही है। लेखक ने जिस तारतम्य के साथ शब्दों को पिरोया है, उससे पाठक के मन में न सिर्फ हमारी थाती के प्रति विश्वास पैदा होगा बल्कि यह पुस्तक देश की विरासत को समझने-जानने की हमारी उत्कंठा को और बढ़ाएगी। लेखक ने उल्लेखित किया है कि यह पुस्तक इतिहास को समर्पित है, स्वराज के लिए हुए संघर्ष को समर्पित है, वीरों के बलिदान को महसूस करने के लिए समर्पित है। कुल मिलाकर एक अविस्मरीय यात्रा है जो भारत के मानस में भारतीयता का भाव जगाने वाले वीर शिरामणि छत्रपति शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व और स्वराज की संकल्पना के संकल्पना के दस्तावेज के रूप में हमारे बीच आई है और हमेशा मौजूद रहेगी। यह सिर्फ यूं ही नहीं कहा जा रहा, यह इसलिए कह रहा हूं कि पुस्तक को लिखते समय लेखक ने कोशिश की है कि पुस्तक में अधिक से अधिक संदर्भ हों ताकि तथ्यों को समझने में आसानी हो।

यह पुस्तक पढ़ते समय हम किले, कोट और गढ़ से बातें करते हैं। बीच-बीच में हम इन किलों से निकलकर अपने आसपास मौजूद गढ़ी (गढ़ से गढ़ी शब्द बना है) हवेली, जंगलों में दिखने वाली सराय की अपभ्रंश संरचनाओं के बीच सूक्ष्म भाव से पहुंच जाते हैं। हमारे वैभवकाल की याद वरबश ही मानस पर अंकित होने लगती है। पुस्तक में प्रतिज्ञापुरुष छत्रपति शिवाजी के संकल्प, अभिषेक, राÓयाभिषेक और फिर देह त्याग तक की यात्रा के साक्षी रहे श्री दुर्गदुर्गेश्वर (रायगढ़ किला) की दास्तान मिलेगी। छत्रपति शिवाजी और मिर्जा राजा जयसिंह के बीच हुई पुरंदर संधि के तथ्य मिलेंगे। वीर शिरोमणि तानाजी के शौर्य की गाथा कहते सिंहगढ़ दुर्ग भी आपसे बात करेगा।

अगर आपको भारत की विरासत, संस्कृति और शौर्य की यात्रा करनी है और हिन्दवी स्वराज दर्शन को पढऩा चाहिए। यह पुस्तक शब्दों के जरिये छत्रपति संभाजीराजे की समाधि, वीर बालाजी बाजीराव जैसे न जाने कितने नामवर और बेनाम योद्धाओं की शौर्यगाथा के गवाह रहे दुर्गों में प्रवेश कराएगी। पहाडिय़ों पर बने किलों की तलहटी से नीचे झांकने पर विवश कर देगी। पगडंडियों से जाते हुए योद्धाओं के साथ यात्रा कराएगी। चतुराई, रणनीतिक कौशल, बाल सुलभ चंचलता और दुर्गों की रक्षा के प्रति छत्रपति की अकुलाहट और प्रतियोगिताओं के आयोजन में भी सामने दर्शक दीर्घा में तत्कालीन दर्शकों के साथ बैठने को मजबूर कर देगी। बस कहना यही है कि शब्दों से स्नेह है, छत्रपति और वीर योद्धाओं के साथ रियासतों के उद्भव-पराभव और शौर्य के दर्शन करने हैं तो वर्तमान में चर्चाओं का केन्द्र साहित्यधर्मी लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक हिन्दवी स्वराज दर्शन कम से कम एक बार अवश्य पढऩी ही चाहिए।

 

यह पुस्तक किसी भी बुक स्टोर पर जाकर पुस्तक विक्रेताओं से भी मांग सकते हैं। ग्वालियर में यह पुस्तक नई सड़क स्थित राष्ट्रोत्थान न्यास भवन परिसर में संचालित पुस्तक केन्द्र पर भी उपलब्ध है। राष्ट्राोत्थान न्यास के पुस्तक केन्द्र पर विधिवत राशि जमाकर पुस्तक प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफार्म अमेजन पर भी उपलब्ध है।

 

 

 

 

 

 

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