sanjay bhardwaj
खेल: क्रिकेट के खेल में नजर पैनी होनी बेहद जरूरी है लेकिन मंसूर अली ने एक आंख से कम दिखने के बाद भी दुनिया भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। वह पहले भारतीय कप्तान थे जिन्होंने टीम को विदेशी धरती पर टेस्ट जीत दिलाई।पटौदी को बहुत कम उम्र में ही सफलता और शौहरत दोनों मिलीं।
आपको जानकार हैरानी होगी कि मंसूर अली खान पटौदी को दो गेंद दिखती थीं। दरअसल, पिता इफ्तिकार अली खान पटौदी के निधन के बाद 11 साल की उम्र में टाइगर पटौदी इंग्लैंड पढ़ाई करने गए थे, जहां उनका एक एक्सीडेंट हुआ था। पढ़ाई के दिनों में पटौदी ने इंग्लैंड में घरेलू मैच खेलना शुरू कर दिया था। वहीं, इंग्लैंड में ही एक कार हादसे ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी थी, क्योंकि इस एक्सीडेंट में कार का शीशा उनकी दाईं आंख में जा घुसा और आंख की रोशनी चली गई थी। हालांकि, उन्होंने हिम्मत और हौसला नहीं हारा, जो उनकी सबसे बड़ी जीत रही। एक आंख की रोशनी खो चुके मंसूर अली खान पटौदी को डॉक्टरों ने क्रिकेट खेलने से मना कर दिया था, लेकिन पटौदी नहीं माने।
एक्सीडेंट के 5 महीने बाद किया टेस्ट डेब्यू
एक्सीडेंट के कुछ ही महीने बाद मंसूर अली खान पटौदी भारत आ गए और अपने मजबूत इरादों से एक्सीडेंट के पांच महीने बाद भारत के लिए अपना टेस्ट डेब्यू किया। यह मैच साल 1961 में इंग्लैंड के खिलाफ दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर खेला गया था। हैरान करने वाली बात ये भी है कि बल्लेबाजी करते समय मंसूर अली खान पटौदी को दो गेंदें दिखाई देती थीं, जिससे वे परेशान रहते थे, लेकिन इसका हल भी उन्होंने निकाल लिया और देश के लिए खेलते रहे।
मंसूर अली खान पटौदी ने काफी प्रैक्टिस करने के बाद फैसला किया था कि वह उस गेंद पर शॉट खेलेंगे जो अंदर की तरफ नजर आती है। नवाब पटौकी के लिए ये ट्रिक काम कर गई। इसके अलावा कई मौकों पर वे बल्लेबाजी के दौरान वह अपनी टोपी से दाईं आंख को छुपा लेते थे जिससे उन्हें सिर्फ एक ही गेंद दिखाई दे और इससे उन्हें शॉट खेलने में आसानी होती थी। करियर में 46 टेस्ट मैच खेलने वाले मंसूर अली खान पटौदी ने भारत के 40 टेस्ट मैचों में कप्तानी की, जिसमें से भारत ने 9 मुकाबले जीते।
इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद वापसी?
यह और बात है कि उनको राजघराने से होने का फायदा मिला। लेकिन उन्होंने एक आंख से क्रिकेट खेला.. उनके रिकार्ड्स बहुत मजबूत नही थे लेकिन ऐसे खिलाड़ी से आप क्या उम्मीद कर सकते है।
विदेशी सरजमी पर पहली बार भारत ने सीरीज उनकी ही कप्तानी में जीती
मंसूर अली खान पटौदी ऐसे कप्तान थे जिससे टीम मेंबर थोड़ा कम डरते थे। लेकिन भारतीय क्रिकेट के कदम टाइगर की कप्तानी के राज में ही जमने शुरू हुए थे, जीत का स्वप्न देखना आरम्भ हुआ था टाइगर ने अपने करियर में एक दोहरा शतक भी लगाया है.. उनके करियर में एक भी अर्धशतक होता तो भी आश्चर्य करने की बात थी..
नवाब खानदान में जन्मे मंसूर अली खान पटौदी
5 जनवरी 1941 को भोपाल के एक नवाब खानदान में जन्मे मंसूर अली खान पटौदी को क्रिकेट की दुनिया में टाइगर पटौदी और नवाब पटौदी के नाम से भी जाना जाता है। महज 20 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर की शुरुआत करने वाले मंसूर अली खान पटौदी को 21 साल की उम्र में भारतीय टीम की कप्तानी मिल गई थी।
अभी तक के सबसे युवा कप्तान बनने का गौरव
भारतीय टीम के लिए क्रिकेट खेलने वाले मंसूर अली खान पटौदी ने साल 1961 से 1975 तक सबसे युवा टेस्ट कप्तान होने का गौरव हासिल किया था। मंसूर अली खान पटौदी का ये रिकॉर्ड करीब 52 साल तक रहा था, लेकिन 2004 में ततेंदा ताइबू ने इस रिकॉर्ड को तोड़ दिया था। आज भी मंसूर अली खान पटौदी भारत के सबसे कम उम्र के टेस्ट कप्तान हैं। उनके बाद सचिन का नाम आता है, जिन्होंने 23 साल की उम्र में कप्तानी की थी।
46 टेस्ट में 6 शतक और 16 अर्धशतक, 34.91 औसत से 2783 रन बनाए
पटौदी ने भारत के लिए कुल 46 टेस्ट मैच खेले था, जिनमें 34.91 की उस दौर के शानदार औसत से कुल 2783 रन बनाए। मंसूर अली खान पटौदी ने अपने टेस्ट करियर में 6 शतक और 16 अर्धशतक जमाए थे। टेस्ट क्रिकेट में उनका सर्वोच्च स्कोर नाबाद 203 रन है। मंसूर अली खान पटौदी ने 300 से ज्यादा फर्स्ट क्लास मैच भी खेले हैं। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में नवाब पटौदी ने 15 हजार से ज्यादा रन बनाए थे। मंसूर अली खान पटौदी की गिनती आज भी भारतीय टीम के सबसे बेहतरीन टेस्ट कप्तानों में की जाती है।
2011 में पटौदी का हो गया था निधन
22 सितंबर 2011 को फेफड़ों के संक्रमण की वजह से मंसूर अली खान पटौदी का निधन हो गया था।