पुण्य तिथि पर विशेष
पं. दीनदयाल जी उपाध्याय भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में एक थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक प्रखर विचारक उत्कृष्ट संगठनकर्ता तथा एक ऐसे नेता थे जिन्होंने जीवन पर्यंन्त अपनी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को जीवन में सबसे ज्यादा महत्त्व दिया था । वे आज की भारतीय जनता पार्टी के लिए तत्कालीन वैचारिक मार्गदर्शक और नैतिक राजनैतिक प्रेरणा के स्रोत थे । पंडित दीनदयाल उपाध्याय मजहब और संप्रदाय के आधार पर भारतीय संस्कृति का विभाजन करने वालों को देश के विभाजन का जिम्मेदार मानते थे। वह हिन्दू राष्ट्रवादी तो थे ही इसके साथ ही साथ मूल्य आधारित भारतीय संस्कृति की राजनीति के पुरोधा भी थे। दीनदयाल की मान्यता थी कि हिन्दू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक आत्मा हैं । दीनदयाल उपाध्याय की पुस्तक एकात्म मानववाद एक ऐसा विधान है जिसका अनुसरण राजनैतिक सुचिता के लिए आवश्यक भी है 7 वह साम्यवाद और पूंजीवाद दोनों की समालोचना करते हुए अंतोदय मानवता को महत्व देते थे ।
एकात्म मानववाद में मानव जाति की मूलभूत आवश्यकताओं और सृजित कानूनों के अनुरुप राजनीतिक कार्रवाई हेतु एक वैकल्पिक सन्दर्भ दिया गया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को ब्रज के पवित्र क्षेत्र मथुरा जिले के छोटे से गाँव श्नगला चंद्रभान में हुआ था। पं. दीनदयाल जी के पिताश्री का नाम श्री भगवती प्रसाद उपाध्याय एवं माता का नाम रामप्यारी था, जो धार्मिक प्रवृत्ति की थीं।
पंडित दीनदयाल जी ने 21 सितम्बर 1951 को उत्तर प्रदेश का एक राजनीतिक सम्मेलन आयोजित किया और नई पार्टी की राज्य इकाई भारतीय जनसंघ की नींव डाली। पंडित दीनदयाल जी इसके पीछे की सक्रिय शक्ति थे डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 21 अक्तूबर 1951 को आयोजित पहले अखिल भारतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की । पंडित दीनदयाल जी की संगठनात्मक कुशलता बेजोड़ थी।
पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय अपनी चाची के कहने पर धोती तथा कुर्ते में और अपने सिर पर टोपी लगाकर सरकार द्वारा संचालित प्रतियोगी परीक्षा दी, जबकि दूसरे उम्मीदवार पश्चिमी सूट पहने हुए थे। उम्मीदवारों ने मजाक में उन्हें पंडितजी कहकर पुकारा यह एक उपनाम था जिसे लाखों लोग बाद के वर्षों में उनके लिए सम्मान और प्यार से इस्तेमाल किया करते थे। इस परीक्षा में वे चयनित उम्मीदवारों में सबसे ऊपर रहे। वे अपने चाचा की अनुमति लेकर बेसिक ट्रेनिंग करने के लिए प्रयाग चले गए और प्रयाग में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेना जारी रखा। बेसिक ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वे पूरी तरह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यों में जुट गए और प्रचारक के रूप में जिला लखीमपुर उत्तर प्रदेश चले गए। सन् 1955 में दीनदयाल उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांतीय प्रचारक बने । पंडित दीनदयाल जी की संगठनात्मक कुशलता बेजोड़ थी। आखऱि में जनसंघ के इतिहास में चिरस्मरणीय दिन आ गया जब पार्टी के इस अत्यधिक सरल तथा विनीत नेता को सन् 1968 में पार्टी के सर्वोच्च अध्यक्ष पद पर बिठाया गया। दीनदयाल जी इस महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी को संभालने के पश्चात जनसंघ का संदेश लेकर दक्षिण भारत गए।
पंडित जी घर गृहस्थी की तुलना में देश की सेवा को अधिक श्रेष्ठ मानते थे। दीनदयाल देश सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उन्होंने कहा था कि हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारतमाता है केवल भारत ही नहीं। माता शब्द हटा दीजिए तो भारत केवल जमीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जाएगा। पंडित जी ने अपने जीवन के एक-एक क्षण को पूरी रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक गहराई से जिया था । पत्रकारिता जीवन के दौरान उनके लिखे शब्द आज भी उपयोगी हैं। प्रारम्भ में समसामयिक विषयों पर वह पॉलिटिकल डायरी नामक स्तम्भ लिखा करते थे। पंडित जी ने राजनीतिक लेखन को भी दीर्घकालिक विषयों से जोड़कर रचना कार्य को सदा के लिए उपयोगी बनाया है।
पंडित जी ने राजनीतिक एवं सामाजिक विषयों पर बहुत महत्वपूर्ण लेखन कार्य किया है। जिनमें एकात्म मानववाद, लोकमान्य तिलक की जीवनी, जनसंघ के राजनैतिक सिद्धांत और नीति जीवन का ध्येय, राष्ट्र जीवन की समस्यायें और राष्ट्रीय अनुभूति, कश्मीर अखंड भारत भारतीय राष्ट्रधारा का पुन: प्रवाह, भारतीय संविधान इनको भी आजादी चाहिए, अमेरिकी अनाज भारतीय अर्थनीतिए विकास की एक दिशा बेकारी समस्या और हल टैक्स या लूट विश्वासघात द ट्रू प्लान्स डिवैलुएशन एए ग्रेटकाल आदि प्रमुख हैं। उनके लेखन का केवल एक ही लक्ष्य था भारत की विश्व पटल पर लगातार पुन प्रतिष्ठा और विश्व विजय। विलक्षण बुद्धि सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों के स्वामी पं दीनदयाल उपाध्याय जी की रहस्यमई हत्या 52 वर्ष की आयु में दिनांक 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय स्टेशन के पास रेलगाड़ी में यात्रा करते समय हुई थी । उनका पार्थिव शरीर मुगलसराय स्टेशन की पटरियों पर पड़ा मिला था।
आज के आधुनिक भारत के निर्माण में भारत के ययस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की सम्पूर्ण योजना और कार्यपद्धति प. दीनदयाल जी उपाध्याय के एकात्म मानववाद के सिद्धांत पर ही आधारित है ।
भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस प्रकाशमान नक्षत्र ने भारत वर्ष में सभ्यतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं प्रोत्साहन करते हुए अपने प्राण तक राष्ट्र को समर्पित कर दिये।