Monday, December 23, 2024

“तानसेन संगीत समारोह-2024” झील की लहरों की मानिद फिज़ा में उठीं स्वर लहरियाँ

भारतीय एवं पाश्चात्य देशों की धुनों का हुआ अद्भुत समागम

घरानेदार एवं उत्कृष्ट ध्रुपद गायकी से गुंजायमान हुआ महाराज बाड़ा

तानसेन समारोह के मंगलाचरण स्वरूप सजी “गालव वाद्य वृंद-सुर ताल समागम” सभा

शहर की वरिष्ठ सांगीतिक विभूतियों व शास्त्रीय संगीत के संवर्धन में जुटी संस्थाएं सम्मानित

जीवन के सौ बसंत देख चुके पं मार्तण्ड जोशी ने “अब न रहूं तोरी मथुरा नगरिया..” बंदिश गाकर किया विरह रस से सराबोर

 

सतरंगी रोशनी में नहाए शहर के हृदय स्थल ऐतिहासिक महाराज बाड़ा पर विक्टोरिया मार्केट के सामने बने भव्य आकर्षक मंच पर भारतीय शास्त्रीय संगीत और पाश्चात्य संगीत का अद्भुत संगम देखकर रसिक अभिभूत हो गए। ख्यातिलब्ध सितार वादक पं. भरत नायक के निर्देशन में “गालव वाद्य वृंद” की प्रस्तुति हुई। इसमें ग्वालियर के उदयीमान नादब्रम्ह के साधकों ने अपने वादन से भारतीय शास्त्रीय संगीत के श्रृंगार रागों की मधुरता, लय और सुर के साथ पाश्चात्य संगीत के जटिल वाद्य यंत्रों का अद्भुत संयोजन दिखाकर रसिकों के मन-मतिष्क को प्रेम, उल्लास और शांति के अनूठे अनुभव में सराबोर कर दिया। इस प्रस्तुति के दौरान भारतीय वाद्य यंत्रों तबला, पखावज, ढोलक व सितार इत्यादि से झर रहे भारतीय संगीत के गूढ भाव, रागों की सुंदरता और श्रृंगारिक पक्षों से रसिक जहाँ भारतीय सांस्कृतिक धारा में गोते लगाते नजर आए, वहीं पाश्चात्य संगीत के जादुई वाद्य यंत्रों वायोलिन, बेस गिटार, जैम्बो, ड्रम इत्यादि वाद्य यंत्रों से निकले सुरों ने भारतीय रागों की भव्यता बरकरार रखते हुए दोनों शैलियों के बीच एक सुंदर सांस्कृतिक पुल बना दिया।

 

“गालव वाद्य वृंद” की प्रस्तुति में सबसे पहले राग ” जोग” के आधार पर मध्य लय रचना में सितार, वायोलिन व हार्मोनियम का साझा वादन के रूप में शास्त्रीय आलाप हुआ। इसके बाद राग ” किरवानी” में भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं पाश्चात्य संगीत की मनोहारी प्रस्तुति से रसिक रूबरू हुए। इस प्रस्तुति में तबला, पखावज, ढोलक, ड्रम, इलेक्ट्रोनिक गिटार, केहॉन व दरभूका की जुगलबंदी ने समा बांध दिया। शास्त्रीय व पाश्चात्य वाद्यों को द्रुत गति देकर झाला एवं तिहाई की प्रस्तुति के साथ गालव वाद्य वृंद ने अपनी प्रस्तुति का सामपन किया।

 

गालव वाद्य वृन्द की प्रस्तुति में सितार पर पंडित भरत नायक, वायोलिन पर अंकित धरकर, हारमोनियम पर नवनीत कौशल, पखावज पर जगत नारायण शर्मा, ढोलक पर सुरेश नायक,तबले पर सुरेश दुबे, जेम्बो पर मनीष शर्मा, ड्रम पर सचिन श्रीवास्तव, केहोन पर पंकज सोनी, वेस गिटार पर दीप चौधरी व गायन में लक्ष्य नायक ने साथ निभाया।

पं. उमेश कंपूवाले की घरानेदार गायिकी के माधुर्य में डूबे रसिक

शास्त्रीय संगीत के विख्यात गायक पं. उमेश कंपूवाले ने जब अपनी खनकदार आवाज में राग ‘शिवरंजनी’ में अपने गायन की शुरूआत की, तो घरानेदार गायिकी जीवंत हो उठी। जाहिर है संगीत रसिक घरानेदार गायिकी के माधुर्य में गोते लगाते नजर आए। उनके गायन में ग्वालियर व बनारस घराने की विशिष्टताएं साफ झलक रहीं थीं। विलंबित तीन ताल में बंदिश के बोल थे “राधे तुमरे नैन में श्याम बसे”। इसके बाद उन्होंने द्रुत तीन ताल में निबद्ध रचना “मनमोहन मेरो श्याम” का गायन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने इसी कड़ी में पहाड़ी ठुमरी “सैंया बिना घर सूना हायराम” अपनी मधुर आवाज में प्रस्तुत की तो रसिक झूम उठे। पं. उमेश कंपूवाले ने “मन लागो मेरो यार फकीरी में” सुनाकर अपने गायन को विराम दिया । उनके साथ गायन में सुश्री गौरी पंडित ने साथ निभाया। तबले पर पांडुरंग तैलंग, हारमोनियम पर अक्षत मिश्रा व गिटार हर्ष भाटिया ने नफासत भरी संगत की।

अभिजीत सुखदाणे ने राग ” बागेश्री” व ” मालकोष” में किया उत्कृष्ट ध्रुपद गायन

गान मनीषी तानसेन की ध्रुपद परंपरा को आगे बढ़ा रहे ध्रुपद गुरू श्री अभिजीत सुखदाणे ने राग ‘ बागेश्री’ में मध्य लय आलाप व द्रुत लय आलाप के बाद सूल ताल में निबद्ध बंदिश ” आये रघुवीर धीर अयोध्या नगर को” पेश की। डागरवाणी परंपरा के प्रतिष्ठित गायक व ग्वालियर ध्रुपद केन्द्र के गुरू श्री सुखदाणे इसी क्रम में राग ‘मालकोष’ और सूल ताल में निबद्ध बंदिश “शंकर गिरिजापति” का गायन कर रसिकों को उत्कृष्ट ध्रुपद गायकी का एहसास कराया। उनका मध्यलय अलाप और द्रुत लय अलापचारी कमाल की रही। अभिजीत सुखदाणे के गायन में झलक रही आवाज की सुस्पष्टता व खनकदारी ने रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके ध्रुपद गायन में अनुज प्रताप ने साथ दिया। पं. जगत नारायण शर्मा ने पखावज से मिठास भरी संगत की।

 

पारुल ने बहाई भक्ति रस की धारा

सुगम संगीत की उदयीमान गायिका सुश्री पारुल बांदिल द्वारा प्रस्तुत भजनों के साथ सभा का आगाज़ हुआ। उन्होंने ” राम नाम का जाप करे मन” से अपने गायन की शुरुआत की। इसके बाद “चलो मन गंगा यमुना तीर” एवं “बाजे रे मुरलिया बाजे का सुमधुर प्रस्तुत कर भक्तिरस की धारा बहा दी। उनके गायन में शिवराम चौहान ने ढोलक, नवनीत कौशल ने हारमोनियम एवं तबले पर आशीष लाघाटे ने बढ़िया संगत की।

इन सांगीतिक विभूतियों व संस्थाओं का हुआ सम्मान

“तानसेन स्वर स्मृति” के तहत महाराज बाड़ा पर आयोजित हुई संगीत सभा में जिला प्रशासन द्वारा देश और दुनियाभर में विख्यात मूर्धन्य सांगीतज्ञ पंडित मार्तण्ड जोशी, पं. प्रभाकर लक्ष्मण गोहदकर, पं. मधुकर शास्त्री तेलंग एवं पं. श्रीराम उमड़ेकर को सम्मानित किया गया। साथ ही शास्त्रीय संगीत के संवर्धन के लिए संकल्पित संस्था ‘रागायन’ के अध्यक्ष महंत रामसेवक दास जी एवं गुरु शिष्य परंपरा के लिए स्वर संस्कार के गुरु संजय देवले को भी सम्मानित किया गया।

सुरमयी संध्या में इनकी रही मौजूदगी

ऐतिहासिक महाराज बाड़ा पर मंगलवार को तानसेन स्वर स्मृति के तहत सजी सुरमयी सभा का शुभारंभ संत कृपाल सिंह जी, संत श्री रामदास जी महाराज व कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। इस आयोजन के क्षेत्रीय पार्षद श्री अनिल सांखला, ब्रिगेडियर श्री दीपक मान, भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी श्री शैलेन्द्र सिंह चौहान, नगर निगम आयुक्त श्री अमन वैष्णव व स्मार्ट सीईओ श्रीमती नीतू माथुर एवं बड़ी संख्या में संगीत रसिक साक्षी बने। सभा का संचालन श्री अशोक आनंद व श्री एस बी ओझा ने किया।

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