शिक्षक – आर. एस. दिनकर, एम. ए Dip. डॉ.अम्बेडकर विचार दर्शन (इग्नू)
हमारा संविधान, हमारा सम्मान अभियान इस प्रतिबद्धता के अनुरूप 24 जन 2024 को भारत के महामहिम उपराष्ट्रपति द्वारा नई दिल्ली में डॉ. अम्बेडकर अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र में शुरू किया गया। इस अभियान का उद्देश्य संविधान के बारे में नागरिकों की समझ को गहरा करना और बाबा साहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के योगदान का प्रचार प्रसार करना है। साथ ही अभियान के दौरान जन सामान्य को संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका) और देश के संविधान पर गर्व करने जैसे बिन्दुओं पर मुख्य रूप से जानकारी दी जाना है। वर्ष भर की गातिविधियों को एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने के लिए वेबसाइट Constitusion 75.com.in तैयार की गई है। और mygov पर संविधान विषय पर निबंध, प्रश्नोत्तरी एवं पोस्टर प्रतियोगिता की तस्वीर साझा की जा सकती है। इस हेतु विधि एवं न्याय मंत्रालय भारत सरकार एवं जनसंपर्क विभाग, म.प्र. शासन ने आदेश एवं निर्देश दिये है। संविधान के मूलभूत सिद्धांत हर भारतीय के साथ जुड़े रहे अभियान निम्न लक्ष्यों को बढ़ावा देता है – 1) संविधान जागरूकता का निर्माण । (2) कानूनी अधिकारों एवं जिम्मेदारियों को बढ़ावा देना । (3)उप—अभियान और विषयगत पहल । संवैधानिक ज्ञान और लोकतांत्रिक भागीदारी के लिए तीन प्रमुख उप विषय-
1) सबको न्याय, हर घर को न्याय । 2 ) नवभारत, नव संकल्प समावेशी राष्ट्र के निर्माण में योगदान के लिए । 3) विधि जाग्रति अभियान – कानूनी अधिकारों और उन्हे प्राप्त करने के तरीकों के बारे में शिक्षित करना। नागरिकों को अभियान के समर्पित पोर्टल के माध्यम से सक्रिय रूप से भाग लेने कि लिए प्रोत्साहित किया गया है। इस पोर्टल के माध्यम से नागरिक अपने ज्ञान का परीक्षण वीडियो, लेख आदि से कर सकते है। यह नागरिकों को भारत के भविष्य को आकार देने में संविधान की भूमिका के बारे में प्रतिज्ञा लेने और ऑनलाईन चर्चाओ में भाग लेने की अनुमति देता है। अभियान 2047 के भारत की कल्पना को आकार देने में भूमिका विकसित भारत की कल्पना का समर्थन करना है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble ) के अनुसार भारत एक सम्प्रभुता संपन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है । सम्प्रभुता का अर्थ है, सर्वोच्च एवं स्वतंत्र होना होना। अब भारत किसी विदेशी और आंतरिक शक्ति के नियंत्रण में नही है । लोकतांत्रिक भारत एक स्वतंत्र देश है, मत देने की स्वतंत्रता, संसद में अनुसूचित सामाजिक समूहों और अनुसूचित जनजातियों को विशिष्ट सीटें आरक्षित की गई है। भारत निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र संस्था है। जो स्वतंत्र एवं निस्पक्ष निर्वाचन कराने के लिये सदैव तत्पर्य है । अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता ( Untouchability) का अन्त कर दिया गया है । और अनुच्छेद 32 संवैधानिक उपचारों का अधिकार जिसे डॉ. अम्बेडकर ने संविधान की आत्मा और दिल कहा है । डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में संविधान सभा की प्रारूप समिति के योगदान को सम्मानित करने और स्वीकार के लिए वर्ष 2015 से प्रतिवर्ष दिनांक 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाया जाता है । डॉ. अम्बेडकर का चयन राजनीतिक योग्यता एवं कानूनी दक्षता की वजह से हुआ था । उन्होनें भारतीय समाज के लिये मार्गदर्शक दस्तावेज प्रस्तुत करने में प्रभावी एवं निर्णायक भूमिका निभाई। भारतीय संविधान समानता, स्वंतत्रता, बंधुता, न्याय, विधि का शासन, विधि के समक्ष समानता लोकतांत्रिक प्रकिया, धर्म, जाति, लिंग और अन्य किसी भेदभाव के बिना सभी व्यक्तियों के लिए गरिमामय जीवन भारतीय संविधान का दर्शन एवं आदर्श है। जिसमें डॉ. अम्बेडकर के विचार विश्व के बीज शब्द है ।
संविधान निर्माण सभा में विभिन्न मुद्दों पर अनेकों बार चर्चा के बाद संविधान तैयार हुआ, जिसकी अध्यक्षता डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने की । प्रारूप समिति की अध्यक्षता डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने प्रत्येक विषय की चर्चा पर तर्कपूर्ण ढंग से समाधान निकाला। संविधान सभा की 02 वर्ष 11 माह 17 दिन की कार्य अवधि में 11 अधिवेशनों में 165 बैठकें हुई जो 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा पारित कर अंगीकार किया गया जिस पर अन्तिम दिन 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किये । जिसे 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया क्योंकि 26 जनवरी 1930 लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य की घोषणा संकल्प दिवस स्मरण रखने कि लिए 26 जनवरी को ही संविधान अमल में लाया गया । संविधान का निर्माण जनता की इच्छा से हुआ है व अन्तिम सत्ता जनता में निहित है ।
भारत के संविधान का निर्माण कार्य सरल नही था, सुगम बनाने के लिए प्रमुख 08 समितियां थी । प्रकिया, वार्ता संचालन, कार्य समिति तथा संविधान समिति आदि । समस्त समितियों के प्रतिवेदन एवं सुझावों के अनुसार संविधान को अंतिम रूप देने के लिए प्रारूप समिति (Drafiting Commitee) बनाई गई जिसका अध्यक्ष डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को बनाया गया। संविधान निर्माण में उल्लेखनीय योगदान, संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सदस्यों में पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम, श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि प्रमुख थे। जिन्होने विचार विमर्श के समय संविधान सभा का पथ प्रदर्शन में मुख्य भूमिका निभाई। संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञों में डॉ. अम्बेडकर विशेष जानकार थे। हमारा संविधान देश का कानूनी दस्तावेज है, जिससे शासन संचालित है। अर्थात् संविधान सबके लिए समान विधान, नियम, कानून, समान कर्त्तव्य और अधिकार है। डॉ. अम्बेडकर के शब्दों में संविधान वकीलों का दस्तावेज नही है, बल्कि जीवन जीने का एक माध्यम है। देश का सर्वोच्च कानून भारत का संविधान है, जो कि एक लिखित दस्तावेज है। इसमें 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां और अब 12 अनुसूचियां है।
संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका) इसमें संविधान निर्माताओं ने संविधान निर्माण के लक्ष्यों, मूल्यों, विचारों को समावेश किया गया है। और इसे संविधान की कुंजी की संज्ञा दी है। प्रस्तावना, संविधान निर्माताओं की मनोभावना एवं संकल्प का प्रतीक है, इसमें इस संकल्प की घोषणा है कि भारत संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणराज्य होगा लेकिन 1976 के 42वें संविधान संशोधन द्वारा भारत को समाजवादी एवं पंथ निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया और भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी, पंथ निरपेक्ष एवं लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। भारत के संविधान में संसोधन तो किया जा सकता है, लेकिन बदला नही जा सकता। देश की एकता और अंखडता की रक्षा करना केवल राज्य का ही नही वरन् प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है ।
संविधान की विशेषताएं, हमारा संविधान अनेक विशेषताओं से भरा पडा है । प्रमुख विशेषताएं निम्न है – 1 ) लिखित एवं विस्तृत 2) कठोर एवं लचीलेपन का समिश्रण 3) समाजवादी पंथ निरपेक्ष 4 ) संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न 5 ) संसदीय शासन प्रणाली 6) संघात्मक शासन व्यवस्था 7) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्याय पालिका 8) नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार एवं कर्त्तव्य 9) राज्य के नीति निर्देशक तत्व 10 ) सार्वभौम व्ययस्क मताधिकार ।
देश के नागरिकों को 6 मौलिक अधिकार भाग 3 के अनुच्छेद ( 12-15 ) अंतर्गत प्राप्त है। 1) समानता का अधिकार 2) स्वतंत्रता का अधिकार 3 ) शोषण के विरूद्ध अधिकार 4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार 5) संस्कृति और शिक्षा का अधिकार 6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार । हमारा संविधान इन मौलिक अधिकारों की गांरटी देता है और ये मौलिक अधिकार नागरिकों के नैतिक और आध्यात्मिक विकास का आधार बनते है । संविधान के भाग 4 (A) अनुच्छेद 51 (A) मूल कर्त्तव्यों में जो इस प्रकार है – 1) संविधान का पालन करें, उसके आदर्शो, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज राष्ट्रगान का सम्मान करें। 2) भारत की संप्रभुता, एकता, अखंडता की रक्षा करें, उसे अक्षुण्ण रखें। 3) देश की रक्षा करें, आव्हान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें। 4) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद, ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें ।
संविधान के प्रमुख बिन्दुओं का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है कि 1) संविधान देश की राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढांचा तैयार करता है । 2 ) संविधान में शासन के सभी अंगो (व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) की रचना, शक्तियों, दायित्वों का उल्लेख है । 3) इसमें जनता की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक उन्नति निहित है, जो कि आस्था और आकांक्षाओं पर आधारित है। हमारे संविधान का गठन संविधान सभा द्वारा किया गया है जो कि स्वतंत्रता आंदोलन के नेतृत्व कर्ता एवं बिट्रिश शासन के मध्य परस्पर सहमति से किया गया। जिसका आधार 1946 कैबिनेट मिशन योजना रही। कैबिनेट मिशन एक प्रतिनिधिमंडल था, जिसमें बिट्रिश मंत्रीमंडल के तीन सदस्य थे। इस मिशन के सुझावों के आधार पर जुलाई 1946 में संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन हुआ । संविधान निर्माण की अवधि एवं संविधान के लागू होने तक भारतीय शासन अधिनियम 1935 के अनुसार देश का शासन संचालित होता रहा । संविधान के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव के आधार पर प्रान्तों से 292 सदस्य चुने गये, देशी रियासतों से 93 सदस्य और चीफ कमीश्नरियों से 04 सदस्य कुल 389 सदस्य चुने गये। जो भारत के विभाजन पश्चात 299 सदस्य रह गये जिनमें 15 महिलाएं सदस्य थी।”
मेरे सपनों का भारत ” में गांधीजी का मानना था कि हर नागरिक महसूस करें कि यह देश मेरा है। वंचित, कमजोर वर्ग और सदियों से उपेक्षित समाज को आरक्षण का प्रावधान संविधान निर्माताओं ने समाज की मुख्य धारा से जोडने एवं प्रतिनिधित्व के उद्देश्य से किया गया।
हमारा संविधान हमें बताता है कि हमारे देश को कैसे काम करना चाहिए। यह भारत के सभी नागारिकों को कुछ मूल्यवान अधिकार देता है । हमारे संविधान की शुरूआत में बहुत आलोचना हुई थी, लेकिन साकारात्मक भावना ने राष्ट्र को एकसूत्र में बांधे रखा है । हमारे संविधान की मूल हस्त लिखित संविधान को कडी सुरक्षा के बीच केन्द्रीय पुस्तकालय में रखा गया है। जिसे सुलेखाकार प्रेमबिहारी नारायण रायजादा हस्त लिखित पाण्डुलिपि तैयार की।
संविधान के भाग 4 में राज्य नीतिनिर्देशक सिद्धांतों का उल्लेख है, इन सिद्धांतों को लागू करना सरकार की जिम्मेदारी है। हमारा संविधान महिलाओं, अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के विकास की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, जिन्हें सदियों से नजरअंदाज किया गया। गतिशीलता हमारे संविधान की सबसे बडी ताकत रही है, यह समय के साथ खुद को संसोधित करता रहता है। संविधान निर्माण के महान योगदान के कारण डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को भारतीय संविधान के पिता या जनक के रूप में (father of Indian constitusion) स्वीकार किया गया। क्योंकि वे सभी संविधान सभा सदस्यों में सबसे प्रसिद्ध थे। डॉ. अम्बेडकर भारत के संविधान निर्माण की प्रकिया में अपने पदों और सभा में अपने हस्तक्षेप और भाषणों के कारण एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गये। साथ ही डॉ. अम्बेडकर की सामाजिक न्याय की अवधारणा को संविधान में समाहित किया गया। उनका मानना था कि समाज में स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे की भावना पाई जाती है तो वहां सामाजिक न्याय है। उनका मत था कि व्यक्ति समाज का दास नही बल्कि समाज का निर्माता है । समाज, राज्य, आर्थिक एवं धार्मिक तंत्र व्यक्ति के लिए है न कि व्यक्ति उनके लिए आपकी दृष्टि में आदर्श समाज व्यवस्था वह व्यवस्था है, जो सामाजिक प्रजातंत्र के सिद्धांतों पर आधारित है। अर्थात् स्वतंत्रता, समानता, एवं भ्रातृत्व पर आधारित समाज व्यवस्था को ही डॉ. अम्बेडकर ने समतामूलक समाज की संज्ञा दी है। समतामूलक समाज से तात्पर्य एक ऐसे समाज से है जिसमें समता अर्थात् समानता के समान अवसर हो । आदर्श समाज व्यवस्था की 600 वर्ष पूर्व गुरू रविदास ने बेगमपुरा शहर की कल्पना करते हुए कहा कि “ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न | छोट – बडे सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न ।।”
समान अवसरों से डॉ. अम्बेडकर का तात्पर्य यह था कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक आदि क्षेत्रों में जिस भी व्यक्ति को सुविधायें चाहिए उसे वे सभी सुविधायें मिलनी चाहिए। डॉ. अम्बेडकर जानते थे कि संविधान में व्यवस्थाऐ कर देने मात्र से ही समस्या का निदान संभव नही है। समाज में दमन, शोषण, असमानता का व्यवहार को नैतिकता के आधार पर समाज व्यवस्था में परिवर्तन लाकर रोका जा सकता है। और नैतिकता के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण, ज्ञानार्जन तथा सुथार की
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को संविधान निर्माता क्यों कहा जाता है ? संविधान सभा में डॉ. बी. आर. अम्बेडकर कहते है कि संविधान तैयार करने का श्रेय का कुछ हिस्सा ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों को भी जाना चाहिए खासकर बी. एम. राव को यह उनकी कृतज्ञता थी। पं. जवाहरलाल नेहरू “ए पॉलीटिकल बायोग्राफी’ माइकेल ब्रेचर डॉ. अम्बेडकर को भारतीय संविधान का वास्तुकार माना और उनकी भूमिका को संविधान निर्माण के रूप में फील्ड जनरल के रूप में रेखांकित किया । संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों में टी. टी. कृष्णामाचारी संविधान सभा की बहस खण्ड 7 पृष्ठ 231 में कहते है कि संभवतः सदस्य इस बात से अवगत है कि आपने ड्राफ्टिंग कमेटी में जिन सात सदस्यों को नामांकित किया है, उनमें एक ने इस्तीफा दे दिया एक की मृत्यु हो गई और एक सदस्य अमेरिका में थे तथा एक सदस्य सरकारी मामलों में उलझे हुए है, जो जिम्मेदारी निर्वहन नही कर पा रहे है । एक दो व्यक्ति दिल्ली से दूर थे, जो स्वास्थ्य की वजह से कमेटी की कार्यवाही में हिस्सा नही ले रहे। सो कुल मिलाकर संविधान को लिखने का सारा भार डॉ. अम्बेडकर के ऊपर आ पडा, मुझे इस बात पर कोई संदेह नही है हम सबको उनका आभारी होना चाहिए कि उन्होने इस जिम्मेदारी को इतने सराहनीय ढंग से अंजाम दिया। महान लेखिका क्रिस्टोफ लिखती है कि ड्राफ्टिंग कमेटी सिर्फ संविधान के प्रारंभिक पाठों को लिखने के लिए जिम्मेदार नही थी बल्कि उसको यह जिम्मा सौंपा गया कि वह विभिन्न समितियों द्वारा भेजे गये अनुच्छेदों (कानूनों) के आधार पर संविधान का लिखित पाठ तैयार करें। जिसे बाद में संविधान सभा के सामने पेश किया जाता था जहां पर डॉ. बी. आर. अम्बेडकर तर्क पूर्ण राजनैतिक योग्यता और कानूनी दक्षता के आधार पर विभिन्न प्रावधानों में संतुलन कायम कर समन्वय स्थापित कर लेते थे। उक्त वर्णित तथ्यों के आधार पर डॉ. अम्बेडकर को भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है। वह भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार संविधान शिल्पी थे। उन्हे 1947 में संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने जीवन के 65 वर्षो में सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, राजनैतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, औद्योगिक तथा संवैधानिक इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में अनगिनत कार्य किये और राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी मल्टीटैलेंटेड व्यक्ति थे । संविधान सभा के 75 वर्ष पूरे होने पर उन्हे संविधान पिता की हैसियत से शासन द्वारा उनका अभिवादन किया जा रहा है।
हमारे लिखित संविधान को डॉ. अम्बेडकर ने संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को मूल अंग्रेजी में 25 नवम्बर 1950 को सौंपा जिसका अंग्रेजी में सुलेख प्रेम बिहारी रायजादा द्वारा कराया गया। जिसमें 6 माह का समय लगा इसमें 233 पन्ने और 13 किलोग्राम वजन है । संविधान की हिन्दी कॉपी कैलीग्राफर बसंत कृष्ण वैद्य ने हाथों से सुलेख किया जिसमें 264 पन्ने और 14 किलोग्राम वजन है। हमारा संविधान न केवल हाथों से लिखा गया है, बल्कि शांति निकेतन के चित्रकारों विशेष रूप से नंदलाल बोरा ने हर पन्ने को सुन्दर कला से सजाया गया है। इसके पृष्ठों पर आरंभ में सारनाथ के अशोक स्तंभ की छवि को उकेरा गया है, जो बुद्ध के वैज्ञानिक एवं मानवतावादी दृष्टिकोण देश की उन्नति में बढ़ावा देना प्रदर्शित करता है। इसके साथ ही रामायण महाभारत गीता के उपदेश के दृश्यों को लिया गया है यानि उकेरा गया है जो कर्त्तव्य पालन में डटे रहने की प्रेरणा देते है | पृष्ठ 20 पर ध्यान मग्न बुद्ध तथा महावीर की छवि जाग्रत अवस्था में देशोन्नति की प्रेरणा देती है | पृष्ठ 98 पर सम्राट अशोक के शासन के दृश्य जो ऐसे शासन की प्रेरणा देते है कि जनता के प्रियबनकर प्रियदर्शी कहलायें । प्रत्येक पृष्ठ पर मूल संविधान में कोई न कोई चित्र उकेरा गया है । पृष्ठ 130-144 तक भागीरथ तपस्या गंगावतरण, ज्ञानतीर्थ नालंदा विश्व विद्यालय सम्राट विक्रमादित्य का दरबार, छत्रपति शिवाजी, गुरू गोविन्द सिंह, वीरांगना लक्ष्मीबाई, भारत की गौरव गाथा का वर्णन देखने को मिलता है। इतना ही नही आधुनिक काल की घटनाओं संविधान के पृष्ठो पर उकेरी गई है। जैसे महात्मा गांधी की दांडीयात्रा, बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का महाड़ तालाब सत्याग्रह (शोषित, वंचित वर्ग को पानी पीने का अधिकार आंदोलन ), महात्मा फुले का शिक्षा की अलख जगाने का दृश्य आदि। इसी प्रकार पृष्ठ 160 पर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस एवं आजाद हिन्द फौज दृश्य जो भारत को आजादी के लिये संघर्ष को दर्शाता है। संविधान में वर्णित चित्रण समरसता, समन्वय एवं सामाजस्य स्थापित करने तथा भारतीय संस्कृति सबके कल्याण की कामना भरोसा रखती है की ओर इशारा करती है । आज आवश्यकता इस बात की है कि आधुनिकता के दौर में नया ज्ञान, विज्ञान सहर्ष स्वीकार करें और हमें अपनी संस्कृति पर भी गर्व करें तथा अनुसरण करें। इस लेख में एक शिक्षक होने के नाते मैं कहना चाहूंगा कि नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इससे विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास करें और शिक्षक समर्पित भाव से काम करें, कोई वंचित कमजोर एवं निर्धन न रहे।
डॉ. अम्बेडकर सच्चे राष्ट्रभक्त थे उन्होनें कहा कि राष्ट्रवाद तभी औचित्य ग्रहण कर सकता है, जब लोगो के बीच जाति, नस्ल या रंग का अन्तर भुलाकर उनमें सामाजिक भ्रातत्व को सर्वोच्च स्थान दिया जायें संविधान सौंपते हुए डॉ. अम्बेडकर कहते है कि मैं आज सदन में संविधान की अच्छाइयां गिनाने नही आया हूं, संविधान में किसी प्रकार की कोई खोट नही है। इसका चलना और न चलना तो चुने हुए प्रतिनिधियों पर निर्भर करेगा । यदि चुने हुए प्रतिनिधि ठीक हुये तो संविधान अच्छा साबित होगा और यदि प्रतिनिधि ठीक नही हुये तो संविधान निःसंदेह बुरा साबित होगा । यह तो कार्यपालिका न्यायपालिका और व्यवस्थापिका देता है । संविधान हमें बताता है कि हमारे देश को कैसे काम करना चाहिए। हां, भारत का संविधान विश्व में सबसे बडा और महान संविधान है क्योंकि संविधान समता, स्वतंत्रता और बंधुता के मूलभूत सिद्धांतो पर आधारित है।
गणतंत्र के रूप में भारत के 75 साल अमृत वर्ष और 26 जनवरी 2025 को भारत अपना 76 वां गणतंत्र दिवस (यौ जम्हूरियत) मनायेगा। गणतंत्र दिवस पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, इस दिन देश के राष्ट्रपति देश को संबोधन करते है एवं सेना अपनी क्षमता और शक्ति का प्रदर्शन करती है। साथ ही दिल्ली के राजपथ पर सभी राज्यों (प्रान्तो) की मनोहारी झांकिया निकाली जाती है।
सादर अभिवादन के साथ इति प्रस्तुति, जय हिन्द ।
लेखक – मोबा. 9165851436 संविधान गातिविधियां क्रियान्वयन ब्लॉक सह समन्वयक है।