Sunday, December 22, 2024

चारागाह,पानी और धार्मिक पर्यटन के हिसाब से तैयार होना है गोशाला सर्किट, प्रदेश में अपनी तरह का पहला प्रयोग

-तानसेन की जन्मस्थली बेहट से रानीघाटी तक है 32 गोशालाओं की चैन -155 किमी के आंचलिक टूरिस्ट सर्किट से हो सकेगा लिंक -धूमेश्वर और रानीघाटी से पनिहार तक के अनछुए प्राचीन और पुरातत्विक महत्व के स्थानों को मिल सकेगा एक्सपोजर

ग्वालियर। मुरार ग्रामीण के बेहट से लेकर शिवपुरी जिले से लगे हरसी बांध तक गोशालाओं का सर्किट तैयार किया जा रहा है। अभी 35 गोशालाएं बनकर तैयार हो चुकी हैं और कुछ बेहतर स्थिति में हैं। इन गोशालाओं को चारागाह, पानी और पर्यटन के हिसाब से तैयार करने की प्लानिंग भी की जा रही है। प्रदेश में अपनी तरह के इस पहले प्रयोग के जरिए गोशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिल सकेगी। इसके साथ ही जिले में तैयार हो रहे 155 किलोमीटर के आंचलिक टूरिस्ट सर्किट से गोशालाओं जोड़कर होम स्टे के लिए आने वाले पर्यटकों को ग्रामीण जन जीवन और पशु पालन की भी बेहतर जानकारी मिलने का माध्यम बनेगा।

दरअसल, मार्च-अप्रेल में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए होम स्टे को लेकर प्लानिंग हुई थी। इसके बाद पर्यटन बोर्ड के अधिकारियों ने भी तीन दिन तक अलग-अलग जगहों का भ्रमण करने के बाद रानीघाटी सहित अन्य जगहों को होम स्टे के लिहाज से तैयार करने में अपनी रुचि दिखाई थी। इस भ्रमण के बाद पूरी तैयारी मंद पड़ गई और आंचलिक पर्यटन पर हो रहा काम लगभग बंद हो गया था। लेकिन अब गोशालाओं को आंचलिक पर्यटन से जोड़कर पूरे सर्किट को फिर से तैयार करने की प्लानिंग पर काम किया जा रहा है ताकि बाहर से आने वाले पर्यटक आंचलिक टूरिज्म के साथ ही गोपालन, जल संरक्षण और खेती के तरीकों को भी नजदीक से देख सकें।

इन ग्रामीण क्षेत्रों को होगा सीधा फायदा
क्षेत्र-1
-बेहट-देवगढ़-पिछोर-सालबाई को सीधे जोड़ा जा सकता है।
यह है कारण
-संगीत सम्राट तानसेन की जन्मस्थली, रतनगढ़ मंदिर, देवगढ़ किला, अंग्रेजों के सैन्य ठिकाना रहे पिछोर किला और मराठा और अंग्रेजों के बीच हुई संधि का प्रतीक सालबाई गांव को देखने समझने का मौका मिलेगा। यहां की गोशालाओं को प्रमोट करने के साथ ही पर्यटकों को हरसी डेम, मणिखेड़ा डेम तक पहुंचाया जा सकता है।
क्षेत्र-2
-नगर निगम, सांतऊ, अमरौल, चीनोर, करियावटी,पवाया, सांखनी से दतिया और सोनागिर जोड़े जा सकते हैं।
यह है कारण
-नगर निगम क्षेत्र से शीतला माता मंदिर, अमरोल में ग्यारहवीं शताब्दी का शिव मंदिर, आंतरी की मुगलकालीन छतरी, रियासतकालीन बाजार रहे करियावटी से होकर महाकवि भवभूति की कर्मस्थली और देश के पहले खुले नाट्यमंच के स्थान पवाया और सांखनी के रियासतकालीन मंदिर देखे जा सकेंगे।
क्षेत्र-3
-तिघरा, लखनपुरा, मद्दा खो, धुआं, घाटीगांव, आरोन, पाटई, देवरी-चिटौली को जोड़ा जा सकता है।
यह है कारण
-अभयारण्य क्षेत्र के गांवों के जन जीवन की जानकारी मिल सकेगी। रानीघाटी के प्रागैतिहासिक काल के मंदिर परिसर में स्थापित आदर्श गोशाला देखने के बाद लोग रानीघाटी के जंगल का भ्रमण करके देवरी स्थित लखेश्वरी मंदिर से हरसी, मगरौनी और नरवर होकर करैरा जा सकते हैं।

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